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Wednesday, June 9, 2010

वह रीत नहीं दोहरानी है !

जीवन धार है नदिया की, उम्र बहता पानी है,
बयाँ लफ्जों में करूँ कैसे, तमन्ना बेज़ुबानी है!

पानी में उठ रहे जो बुलबुले बारिश की बूंदों से,
मौसम के कुछ पल और ठहरने की निशानी है!

रुकावटें बहुत आयेंगी हमारे सफ़र के दरमियाँ,
तू अपना हुस्न संभाले रख,मेरे पास जवानी है !

मुहब्बत का ये जूनून अगर हद से गुजर जाएगा,
समझ लेना मैं मजनू हूँ,तू मेरी लैला दिवानी है!

संग फासला तय करेंगे हम पर्वत से समंदर तक,
बिछड़ जाए दोराहे पर, वह रीत नहीं दोहरानी है !

2 comments:

सहज समाधि आश्रम said...

वह रीत नहीं..दर्द की दुकान..हौसला..
तीनों कवितायें पसन्द आयीं । दर्द की
दुकान..में आपके मनोभाव अच्छे
लगे..आपकी टिप्पणियां भी काफ़ी
पसन्द आती है..धन्यवाद ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com

अरुणेश मिश्र said...

प्रशंसनीय ।