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Friday, December 26, 2008

हद-ए-झूठ !

रंगों की महफिल में
सिर्फ़ हरा रंग तीखा,
बाकी सब फीके !
सच तो खैर,इस युग में
कम ही लोग बोलते है ,
मगर झूठ बोलना तो कोई
इन पाकिस्तानियों से सीखे !!


झूठ भी ऐंसा कि एक पल को,
सच लगने लगे !
दिमाग सफाई के धंधे  में इन्होने
न जाने कितने युवा ठगे !!
गुनाहों को ढकने के लिए,
खोजते है रोज नए-नए तरीके !
सच तो खैर, इस युग में
कम ही लोग बोलते है,
मगर झूठ बोलना तो कोई
इन पाकिस्तानियों से सीखे !!


जुर्म का अपने ये
रखते नही कोई हिसाब !
भटक गए राह से अपनी,
पता नही कितने कसाब !!
पाने की चाह है उस जन्नत को
मरके, जो पा न सके जी के !
सच तो खैर, इस युग में
कम ही लोग बोलते है ,
मगर झूठ बोलना तो कोई
इन पाकिस्तानियों से सीखे !!


इस युग में सत्य का दामन,
यूँ तो छोड़ दिया सभी ने !
असत्य के बल पर उछल रहे है,
आज टुच्चे और कमीने !!
देखे तो है बड़े-बड़े झूठे,
मगर देखे न इन सरीखे !
सच तो खैर, इस युग में
कम ही लोग बोलते है ,
मगर झूठ बोलना तो कोई
इन पाकिस्तानियों से सीखे !!


दहशतगर्दी के इस खेल में
मत फंसो मिंया जरदारी !
पड़ ना जाए कंही तुम्ही पर
तुम्हारी यह करतूत भारी !
करो इस तरह कि तुम्हारी
कथनी व करनी में फर्क न दीखे !
सच तो खैर, इस युग में
कम ही लोग बोलते है,
मगर झूठ बोलना तो कोई
इन पाकिस्तानियों से सीखे !!

जिसकी लाठी उसकी भैंस !

सबल और निर्बल के मध्य,  
आज दंगल का  खेल सारा है !
बलशाली जश्न में मदहोश,
निर्बल लाचार, थका-हारा है !!

दुबले को नसीब होती  है,
लज्जा, लाचारी, कलंक, खेद !
बाहुबली  की जेब में गए,
सारे  साम, दाम, दंड, भेद !!

चाह किसे नहीं मगर दुर्बल,
वक्त और हालात का मारा है !
सबल और निर्बल के मध्य,  
 आज दंगल का खेल सारा है !!

भूमंडलीकरण के दौर में,
बेचारा स्वदेशी बह चला है!
पूंजीवाद,साम्यवाद के बीच,
बस दिखावे का फासला है !


देशी छोड़ो, विदेशी अपनावो,
यही सभ्य समाज का नारा है !
सबल और निर्बल के मध्य,  
आज दंगल का खेल सारा है !!