बापू, अब तेरे देश में, अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !
कोई लल्लू बन के लुडक रहा, कोई चिकना मुलायम,
खुद को अमर बताने वाले, खा-खा के मोटे हो गए है !!
तेरे इस देश के गरीब की तो माया भी निराली हो गई,
धन चिंता में दिल सफ़ेद और काया भी काली हो गई !
साम्यनिर्धन हिताषियों के तो कर्म ही खोटे हो गए है,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!
पास्ता माता के चरणों में, मुखिया भी लमलेट हो गया,
जनप्रतिनिधि सिपैसलार तो जैसे फौजी तमलेट हो गया !
घर-उदर इनके बड़े हो गए, किन्तु दिल छोटे हो गए है,
जिधर देखो, सबके सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!
फतवे बेचने लगे, धर्म की भट्टी पे आग तापने वाले,
कोई और बाबरी ढूढ़ रहे, राम का राग अलापने वाले !
हकदार का हक़ मारने को, रिजर्वेशन कोटे हो गए है,
जिधर देखो, सबके सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !
कोई लल्लू बन के लुडक रहा, कोई चिकना मुलायम,
खुद को अमर बताने वाले, खा-खा के मोटे हो गए है !!
तेरे इस देश के गरीब की तो माया भी निराली हो गई,
धन चिंता में दिल सफ़ेद और काया भी काली हो गई !
साम्यनिर्धन हिताषियों के तो कर्म ही खोटे हो गए है,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!
पास्ता माता के चरणों में, मुखिया भी लमलेट हो गया,
जनप्रतिनिधि सिपैसलार तो जैसे फौजी तमलेट हो गया !
घर-उदर इनके बड़े हो गए, किन्तु दिल छोटे हो गए है,
जिधर देखो, सबके सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!
फतवे बेचने लगे, धर्म की भट्टी पे आग तापने वाले,
कोई और बाबरी ढूढ़ रहे, राम का राग अलापने वाले !
हकदार का हक़ मारने को, रिजर्वेशन कोटे हो गए है,
जिधर देखो, सबके सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!
27 comments:
बहुत सटीक व्यंग...आज के राजनीतिज्ञों पर....:):)
आपकी ( यूँ भी बावफा होते हैं लोग ) ग़ज़ल को .. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर मंगलवार १.०६.२०१० के लिए ली गयी है ..
http://charchamanch.blogspot.com/
waah bahut sundar vyang sirf raajneetigyo par hi nahi...har ek insaan par fit hoti hai ye kavita...jahan hame fayada milega ham wahin ludhak jaayenge...
किन्तु दिल छोटे हो गए है,
wah...................
http://drsatyajitsahu.blogspot.com
सही चोट की है... आखिरी लाइनों तक
गोदियाल साब,
बहुत बढिया विचार
अभी आया है एक समाचार
पेंदे लगाने का कारखाना करना है तैयार
जय जोहार जय जोहार जय जोहार
"फतवे बेचने लगे, धर्म की भट्टी पे आग तापने वाले,
कोई और बाबरी ढूढ़ रहे, राम का राग अलापने वाले !
हकदार का हक़ मारने को, रिजर्वेशन कोटे हो गए है,"
खतरनाक वाली बात है जी आज तो....
कुंवर जी,
बापू, अब तेरे देश में, अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !
कोई लल्लू बन के लुडक रहा, कोई चिकना मुलायम,
खुद को अमर बताने वाले, खा-खा के मोटे हो गए है !!
...bahut hi satik byangya ,raajniti par karara chot.
किन्तु दिल छोटे हो गए है,
शर्म जिन होने बेच खाई वो क्या जाने की इज्जत किस चिडिया का नाम है, इन मै से कई नेता तो किसी चपडासी की ओलाद है, लेकिन कभी सरकार ने नही पुछा कि भाई इन १०,२० सालो मै यह धन दोलत कहां से आई??
बढ़िया व्यंग! ,,,हम तो ये हालात देख कुछ और छोटे हो गए!
bahut hi sundar shabdon mein halat ka vivechan kar diya.
तेरे इस देश के गरीब की तो माया भी निराली हो गई,
धन चिंता में दिल सफ़ेद और काया भी काली हो गई !
साम्यनिर्धन हिताषियों के तो कर्म ही खोटे हो गए है,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!
बहुत बढ़िया गोदियाल साहब .
बापू,अब तेरे देश में,अच्छे लोगो के टोटे हो गए है
जिधर देखो,सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है!
लाजवाब व्यंग्य रचना गोदियाल साहब! एकदम सटीक!
जात ना पूछे .................पात ना पूछे ................. ना पूछेगा तेरा धर्मा...........रुब तेरा पूछेगा ओह बन्दे .................क्या था तेरा कर्मा !!
व्यंग्यात्मक रूप से बहुत शानदार पोस्ट....
बापू, अब तेरे देश में,
अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
जिधर देखो, सब के सब
बिन पैंदे के लोटे हो गए है !
कोई लल्लू बन के लुडक रहा,
कोई चिकना मुलायम,
खुद को अमर बताने वाले,
खा-खा के मोटे हो गए है !!
हकीकत से रूबरू कराती रचना!
बापू, अब तेरे देश में, अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !
भई गोदियाल जी क्या बात कही है ।
बहुत बढ़िया ।
बापू, अब तेरे देश में, अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !
क्या ये देश अब बापू वाला देश रह भी गया है .... मुझे तो शक है ...
कोई और बाबरी ढूढ़ रहे, राम का राग अलापने वाले !
हकदार का हक़ मारने को, रिजर्वेशन कोटे हो गए है,"
बहुत दिनों तक याद रहेगी यह लाइन !
बहुत जोरदार व्यंग्य है।बधाई।
तेरे इस देश के गरीब की तो माया भी निराली हो गई,
धन चिंता में दिल सफ़ेद और काया भी काली हो गई !
साम्यनिर्धन हिताषियों के तो कर्म ही खोटे हो गए है,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!
अहिंसा का झुनझुना थमाकर वो तो सबके बापू हो गये,
जान लुटा दी जिन वीरों ने, उनके नाम भी छोटे हो गये।
क्या गोदियाल जी, शुरू में ही मूड............
सटीक व्यंग!
सटीक व्यंग!
वाह! कमाल कर दिया आपने, सटीक चित्रण!
इसे कहते हैं हास्य-व्यंग्य...
कोई लल्लू बन के लुडक रहा, कोई चिकना मुलायम,
खुद को अमर बताने वाले, खा-खा के मोटे हो गए है !!
तीखा व्यंग्य और सटीक भी
गोदियाल साहब अच्छा तीखा व्यंग्य है। अच्छा लगा पढ़कर।
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