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Monday, May 31, 2010

सबके सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !

बापू, अब तेरे देश में, अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !
कोई लल्लू बन के लुडक रहा, कोई चिकना मुलायम,
खुद को अमर बताने वाले, खा-खा के मोटे हो गए है !!


तेरे इस देश के गरीब की तो माया भी निराली हो गई,
धन चिंता में दिल सफ़ेद और काया भी काली हो गई !
साम्यनिर्धन हिताषियों के तो कर्म ही खोटे हो गए है,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!


पास्ता माता के चरणों में, मुखिया भी लमलेट हो गया,
जनप्रतिनिधि सिपैसलार तो जैसे फौजी तमलेट हो गया !
घर-उदर इनके बड़े हो गए, किन्तु दिल छोटे हो गए है,
जिधर देखो, सबके सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!


फतवे बेचने लगे, धर्म की भट्टी पे आग तापने वाले,
कोई और बाबरी ढूढ़ रहे, राम का राग अलापने वाले !
हकदार का हक़ मारने को, रिजर्वेशन कोटे हो गए है,
जिधर देखो, सबके सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!

27 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सटीक व्यंग...आज के राजनीतिज्ञों पर....:):)

आपकी ( यूँ भी बावफा होते हैं लोग ) ग़ज़ल को .. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर मंगलवार १.०६.२०१० के लिए ली गयी है ..
http://charchamanch.blogspot.com/

दिलीप said...

waah bahut sundar vyang sirf raajneetigyo par hi nahi...har ek insaan par fit hoti hai ye kavita...jahan hame fayada milega ham wahin ludhak jaayenge...

Dr Satyajit Sahu said...

किन्तु दिल छोटे हो गए है,


wah...................



http://drsatyajitsahu.blogspot.com

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सही चोट की है... आखिरी लाइनों तक

ललित शर्मा said...

गोदियाल साब,
बहुत बढिया विचार
अभी आया है एक समाचार
पेंदे लगाने का कारखाना करना है तैयार

जय जोहार जय जोहार जय जोहार

kunwarji's said...

"फतवे बेचने लगे, धर्म की भट्टी पे आग तापने वाले,
कोई और बाबरी ढूढ़ रहे, राम का राग अलापने वाले !
हकदार का हक़ मारने को, रिजर्वेशन कोटे हो गए है,"

खतरनाक वाली बात है जी आज तो....

कुंवर जी,

arvind said...

बापू, अब तेरे देश में, अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !
कोई लल्लू बन के लुडक रहा, कोई चिकना मुलायम,
खुद को अमर बताने वाले, खा-खा के मोटे हो गए है !!
...bahut hi satik byangya ,raajniti par karara chot.

Mahak said...

किन्तु दिल छोटे हो गए है,

राज भाटिय़ा said...

शर्म जिन होने बेच खाई वो क्या जाने की इज्जत किस चिडिया का नाम है, इन मै से कई नेता तो किसी चपडासी की ओलाद है, लेकिन कभी सरकार ने नही पुछा कि भाई इन १०,२० सालो मै यह धन दोलत कहां से आई??

राजेन्द्र मीणा said...

बढ़िया व्यंग! ,,,हम तो ये हालात देख कुछ और छोटे हो गए!

वन्दना said...

bahut hi sundar shabdon mein halat ka vivechan kar diya.

SANJEEV RANA said...

तेरे इस देश के गरीब की तो माया भी निराली हो गई,
धन चिंता में दिल सफ़ेद और काया भी काली हो गई !
साम्यनिर्धन हिताषियों के तो कर्म ही खोटे हो गए है,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!

बहुत बढ़िया गोदियाल साहब .

पं.डी.के.शर्मा"वत्स" said...

बापू,अब तेरे देश में,अच्छे लोगो के टोटे हो गए है
जिधर देखो,सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है!

लाजवाब व्यंग्य रचना गोदियाल साहब! एकदम सटीक!

शिवम् मिश्रा said...

जात ना पूछे .................पात ना पूछे ................. ना पूछेगा तेरा धर्मा...........रुब तेरा पूछेगा ओह बन्दे .................क्या था तेरा कर्मा !!

महफूज़ अली said...

व्यंग्यात्मक रूप से बहुत शानदार पोस्ट....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...

बापू, अब तेरे देश में,
अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
जिधर देखो, सब के सब
बिन पैंदे के लोटे हो गए है !
कोई लल्लू बन के लुडक रहा,
कोई चिकना मुलायम,
खुद को अमर बताने वाले,
खा-खा के मोटे हो गए है !!

हकीकत से रूबरू कराती रचना!

डॉ टी एस दराल said...

बापू, अब तेरे देश में, अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !

भई गोदियाल जी क्या बात कही है ।
बहुत बढ़िया ।

दिगम्बर नासवा said...

बापू, अब तेरे देश में, अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !

क्या ये देश अब बापू वाला देश रह भी गया है .... मुझे तो शक है ...

डा० अमर कुमार said...


कोई और बाबरी ढूढ़ रहे, राम का राग अलापने वाले !
हकदार का हक़ मारने को, रिजर्वेशन कोटे हो गए है,"


बहुत दिनों तक याद रहेगी यह लाइन !

परमजीत सिँह बाली said...

बहुत जोरदार व्यंग्य है।बधाई।

तेरे इस देश के गरीब की तो माया भी निराली हो गई,
धन चिंता में दिल सफ़ेद और काया भी काली हो गई !
साम्यनिर्धन हिताषियों के तो कर्म ही खोटे हो गए है,
जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!

मो सम कौन ? said...

अहिंसा का झुनझुना थमाकर वो तो सबके बापू हो गये,
जान लुटा दी जिन वीरों ने, उनके नाम भी छोटे हो गये।
क्या गोदियाल जी, शुरू में ही मूड............

हास्यफुहार said...

सटीक व्यंग!

हास्यफुहार said...

सटीक व्यंग!

nilesh mathur said...

वाह! कमाल कर दिया आपने, सटीक चित्रण!

दीपक 'मशाल' said...

इसे कहते हैं हास्य-व्यंग्य...

M VERMA said...

कोई लल्लू बन के लुडक रहा, कोई चिकना मुलायम,
खुद को अमर बताने वाले, खा-खा के मोटे हो गए है !!
तीखा व्यंग्य और सटीक भी

राजकुमार सोनी said...

गोदियाल साहब अच्छा तीखा व्यंग्य है। अच्छा लगा पढ़कर।