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Friday, January 21, 2011

मातृ-भूमि की पुकार !








तुम्हे मादरे हिंद पुकार रही है,उठो सपूतों,
तुम वतन के मसले पर, ढुलमुल कैसे हो !
बहुत लूट लिया देश को इन बत्ती वालों ने,
अब यह सोचो, इनकी बत्ती गुल कैसे हो!!

हर हाल, हमको इनसे देश बचाना होगा,
स्वावलंबन पथ पे नव-अंधड़ लाना होगा!
दूषण विरुद्ध हमारा बुलंद बिगुल कैसे हो,
अब यह सोचो, इनकी बत्ती गुल कैसे हो!!

एक और जंग हमको फिर लडनी होगी,
आजादी की उचित परिभाषा गढ़नी होगी!
अलख जगाये,उज्जवल आगे कुल कैसे हो,
अब यह सोचो, इनकी बत्ती गुल कैसे हो!!

जाति-धर्म,वर्ग वैमनस्यता छोडनी होगी,
दिल में वतन-परस्त भावना जोड़नी होगी!
देश-प्रेम का जर्जर, मजबूत ये पुल कैसे हो,
अब यह सोचो, इनकी बत्ती गुल कैसे हो!!



छवि गूगल से साभार

3 comments:

Arvind Mishra said...

एक जोरदार उदबोधन !

बैसवारी said...

आप जैसे कवि-ह्रदय वाले लोगों को ही आगे आना होगा,वर्ना तो 'यथास्थिति' कायम रहेगी...."अँधेरा क़ायम रहेगा" की तर्ज़ पर !

Amrita Tanmay said...

सशक्त और ...भावपूर्ण रचना