आज उदित सूरज है हर हाल में तुम्हे जलना है !
कल सांझ चौखट पे दस्तक देगी, तुम्हे ढलना है !!
ये सच है कि पहाड़ सी जिन्दगी जीना आसां नहीं !
फिर भी पहाड़ बनके क्षण-क्षण हिम सा गलना है !!
वातावरण से छीन के कोई ले गया है खुसबूओ को !
तुम्हे चट्टान बनके उन हवाओं का रुख बदलना है !!
भूल गए, माँ ने तुम्हे शेरनी का सा दूध पिलाया था !
तुम्हे सिखाया किसने, तुम्हारा काम हाथ मलना है !!
थककर रोक ले कहीं पर कदम ये मुमकिन नहीं !
'गोदियाल' अभी तुम्हे तो बहुत दूर तक चलना है !!
Tuesday, May 11, 2010
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18 comments:
waah josh dila diya sir aapne...
गोदियाल जी अगर आप बुरा न मानें तो हमें हिन्दूओं से आपके माध्यम से सिर्फ इतना कहना है
आपभूल गए,माँ ने तुम्हे शेरनी का सा दूध पिलाया था !
आप कबितायें प्रेरणादायक लिखते हैं
शुक्रिया दिलीप जी, आप लोगो के उत्साह वर्धन से निसंदेह आगे लिखने की प्रेरणा मिलती है , और यह हर एक उस सीरियस ब्लोगर के लिए अहम् है , जो वाकई कुश हट के लिखना चाहता है, जिसमे से एक आप भी हो !
आपने बहुत अच्छा लिखा है, खासकर उनके लिये जो निरपेक्ष हो चुके हैं>..
ओजपूर्ण प्रेरक पंक्तियां हैं गोदियाल जी ।
वातावरण से छीन के कोई ले गया है खुसबूओ को !
तुम्हे चट्टान बनके उन हवाओं का रुख बदलना है !!
ओज की गज़ल और भावपूर्ण
आलस तज कर उठ मतवाले
दूर निकल गए दुनिए वाले ....ये मेरे पिताजी बोला करते थे ....किसी ने लिखा है पर अच्छा लिखा है
राम त्यागी
http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/
उत्साह बढाती कविता।
आत्मविश्वास बढ़ती हुई एक सुंदर रचना..गोदियाल जी बहुत बहुत धन्यवाद
प्रेरणादायक और रगों जोश भर देने वाली एक ........ शानदार प्रस्तुति
behad sundar panktiyan
एक प्रेरणादायी सकारात्मक सोच पैदा करती रचना...आज मुझे जरुरत भी थी ऐसी रचना पढ़ने की..लगा जैसे आपने मेरे लिए ही रच दी है.
गोदियाल साहब,
बहुत खूब।
असर जरूर होगा आपकी बातों का।
आभार।
प्रेरक सुंदर रचना...
एक अपील:
विवादकर्ता की कुछ मजबूरियाँ रही होंगी अतः उन्हें क्षमा करते हुए विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
जबरदस्त वाली बात है जी ये तो....
"भूल गए, माँ ने तुम्हे शेरनी का सा दूध पिलाया था !
तुम्हे सिखाया किसने, तुम्हारा काम हाथ मलना है !!"
जब तक आप सब हो स्मरण कराने के लिए तब तक कैसे हम बस हाथ मल कर ही रह जायेंगे!
जय हिंद!
कुंवर जी,
ओज, तेज और उमंग के साथ विश्वास से भरी रचना
आभार
.........प्रेरणादायक
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