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Tuesday, May 11, 2010

अभी तुम्हे तो बहुत दूर तक चलना है !

आज उदित सूरज है हर हाल में तुम्हे जलना है !
कल सांझ चौखट पे दस्तक देगी, तुम्हे ढलना है !!

ये सच है कि पहाड़ सी जिन्दगी जीना आसां नहीं !
फिर भी पहाड़ बनके क्षण-क्षण हिम सा गलना है !!

वातावरण से छीन के कोई ले गया है खुसबूओ को !
तुम्हे चट्टान बनके उन हवाओं का रुख बदलना है !!

भूल गए, माँ ने तुम्हे शेरनी का सा दूध पिलाया था !
तुम्हे सिखाया किसने, तुम्हारा काम हाथ मलना है !!

थककर रोक ले कहीं पर कदम ये मुमकिन नहीं !
'गोदियाल' अभी तुम्हे तो बहुत दूर तक चलना है !!

18 comments:

दिलीप said...

waah josh dila diya sir aapne...

सुनील दत्त said...

गोदियाल जी अगर आप बुरा न मानें तो हमें हिन्दूओं से आपके माध्यम से सिर्फ इतना कहना है

आपभूल गए,माँ ने तुम्हे शेरनी का सा दूध पिलाया था !
आप कबितायें प्रेरणादायक लिखते हैं

पी.सी.गोदियाल said...

शुक्रिया दिलीप जी, आप लोगो के उत्साह वर्धन से निसंदेह आगे लिखने की प्रेरणा मिलती है , और यह हर एक उस सीरियस ब्लोगर के लिए अहम् है , जो वाकई कुश हट के लिखना चाहता है, जिसमे से एक आप भी हो !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

आपने बहुत अच्छा लिखा है, खासकर उनके लिये जो निरपेक्ष हो चुके हैं>..

अजय कुमार झा said...

ओजपूर्ण प्रेरक पंक्तियां हैं गोदियाल जी ।

M VERMA said...

वातावरण से छीन के कोई ले गया है खुसबूओ को !
तुम्हे चट्टान बनके उन हवाओं का रुख बदलना है !!
ओज की गज़ल और भावपूर्ण

राम त्यागी said...

आलस तज कर उठ मतवाले
दूर निकल गए दुनिए वाले ....ये मेरे पिताजी बोला करते थे ....किसी ने लिखा है पर अच्छा लिखा है

राम त्यागी
http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/

मनोज कुमार said...

उत्साह बढाती कविता।

विनोद कुमार पांडेय said...

आत्मविश्वास बढ़ती हुई एक सुंदर रचना..गोदियाल जी बहुत बहुत धन्यवाद

राजेन्द्र मीणा said...

प्रेरणादायक और रगों जोश भर देने वाली एक ........ शानदार प्रस्तुति

shikha varshney said...

behad sundar panktiyan

Udan Tashtari said...

एक प्रेरणादायी सकारात्मक सोच पैदा करती रचना...आज मुझे जरुरत भी थी ऐसी रचना पढ़ने की..लगा जैसे आपने मेरे लिए ही रच दी है.

मो सम कौन ? said...

गोदियाल साहब,
बहुत खूब।
असर जरूर होगा आपकी बातों का।

आभार।

महेन्द्र मिश्र said...

प्रेरक सुंदर रचना...

Udan Tashtari said...

एक अपील:

विवादकर्ता की कुछ मजबूरियाँ रही होंगी अतः उन्हें क्षमा करते हुए विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

-समीर लाल ’समीर’

kunwarji's said...

जबरदस्त वाली बात है जी ये तो....

"भूल गए, माँ ने तुम्हे शेरनी का सा दूध पिलाया था !


तुम्हे सिखाया किसने, तुम्हारा काम हाथ मलना है !!"

जब तक आप सब हो स्मरण कराने के लिए तब तक कैसे हम बस हाथ मल कर ही रह जायेंगे!
जय हिंद!


कुंवर जी,

SANJEEV RANA said...

ओज, तेज और उमंग के साथ विश्वास से भरी रचना
आभार

संजय भास्कर said...

.........प्रेरणादायक