आज यहाँ खुद ही, सवालों में घिरा यक्ष है,
अपने ही घर से बेघर, हो गया निष्पक्ष है !
ईमान का बेटा दीन, दर-दर भटक रहा है,
शठ का बेटा कपट, भ्रष्टता में हुआ दक्ष है !!
धूर्त का घर हर रोज, मना रहा है दीवाली,
वीरान-सुनशान पडा, हरीशचंद्र का कक्ष है !
चोर-उचक्के, लुच्चे-लफंगे, गद्दी पर काबिज हुए,
कौवा मूंग दल रहा यहाँ, हंस के वक्ष है !!
लूट-खसौट, अत्याचार-दुराचार, सब शीर्ष गए,
जो हो रहा, वो छुपा नहीं, आपके समक्ष है !
हे कृष्ण, भूल गए तुम, यदा-यदा ही धर्मस्य..
गोदियाल पूछता है तुम्हे, तुम्हारा क्या लक्ष है ??
अपने ही घर से बेघर, हो गया निष्पक्ष है !
ईमान का बेटा दीन, दर-दर भटक रहा है,
शठ का बेटा कपट, भ्रष्टता में हुआ दक्ष है !!
धूर्त का घर हर रोज, मना रहा है दीवाली,
वीरान-सुनशान पडा, हरीशचंद्र का कक्ष है !
चोर-उचक्के, लुच्चे-लफंगे, गद्दी पर काबिज हुए,
कौवा मूंग दल रहा यहाँ, हंस के वक्ष है !!
लूट-खसौट, अत्याचार-दुराचार, सब शीर्ष गए,
जो हो रहा, वो छुपा नहीं, आपके समक्ष है !
हे कृष्ण, भूल गए तुम, यदा-यदा ही धर्मस्य..
गोदियाल पूछता है तुम्हे, तुम्हारा क्या लक्ष है ??
12 comments:
आज यहाँ खुद ही, सवालों में घिरा यक्ष है,
अपने ही घर से बेघर, हो गया निष्पक्ष है !
aapki pahli lain sabse achhi lgi vaise sabhi achhi hai lekin yah lain mujhe sabse achhi lgi
धूर्त का घर हर रोज, मना रहा है दीवाली,
वीरान-सुनशान पडा, हरीशचंद्र का कक्ष है !
आज यहाँ खुद ही, सवालों में घिरा यक्ष है,
अपने ही घर से बेघर, हो गया निष्पक्ष है !
bahut badhiya likha hai Godiyal sahab,
Behtareen lagi ye rachna aapki..
"चोर-उचक्के, लुच्चे-लफंगे, गद्दी पर काबिज हुए,
कौवा मूंग दल रहा यहाँ, हंस के वक्ष है!!"
सत्य को प्रतिपादित करती हुईं पंक्तियाँ!
सवालों में उलझा ही गयी कविता .....!!
हे कृष्ण, भूल गए तुम, यदा-यदा ही धर्मस्य..
गोदियाल पूछता है तुम्हे, तुम्हारा क्या लक्ष है ??
हमारा भी यही सवाल है।
कवि का कृष्ण से साक्षात्कार दिलचस्प है।
ईमान का बेटा दीन, दर-दर भटक रहा है,
शठ का बेटा कपट, भ्रष्टता में हुआ दक्ष है !!
ठीक ही तो है,
जैसा बेटा वैसा बाप!
लाजवाब.
रामराम.
हे कृष्ण, भूल गए तुम, यदा-यदा ही धर्मस्य..
गोदियाल पूछता है तुम्हे, तुम्हारा क्या लक्ष है ??
गोदियाल साहब ............ सही प्रश्न किया है आपने .......... पूरी कविता ही अपने आप से प्रश्न करती हुई है ....... बहुत खूब
क्या बात है ,पहले तो आज के हालात को दर्शा दिया और अंत में एक अनुत्तरित प्रश्न । अच्छी रचना , बधाई
बहुत सही प्रश्न उठाये हैं....समसामयिक रचना..
गोदियाल साहब ............ सही प्रश्न किया है आपने .
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