मिलन की चाह मे महबूब की, अब और न,
किसी आशिक को दिमाग खर्च करना होगा,
जब जी करेगा पाने को झलक, इक दूजे की,
अन्तर्जाल पर बस ’गुगुल-सर्च’ करना होगा ॥
कर लो अब तो मिलने का वादा आशिको,
बिन सोचे-समझे, और किसी भी शर्त पर,
छुपा लें चाहे आशिको के घरवाले कही भी,
ठिकाना ढूंढ लेंगा दिलजला,’गुगुल-अर्थ’ पर॥
न ही किसी की नजरों का भय सतायेगा,
और न किसी को कोई सा भी फ़ाइन देंगे,
जब भी वेलेंटाइन का फूल देंगे साथी को,
बेहिचक, सुन्दर-सुगंधित, औन-लाइन देंगे॥
अब और न छुप-छुप के मिलने की दरकार,
न डरने की जरुरत किसी मेल-फ़ीमेल से,
बतियाने का दिल करे जब कभी मह्बूब से,
दिल खोल के कर लो बात, ’जी-मेल’ से ॥
सुनशान पार्क के कोने, वीरान सड्के देखकर,
शिव-राम सेना सोचे कि दुनिया सुधर गई,
देखकर धमाल इस हाई-टेक आशिकी का ,
’गोदियाल’ सोचे, बेटा, अपनी तो उमर गई॥
किसी आशिक को दिमाग खर्च करना होगा,
जब जी करेगा पाने को झलक, इक दूजे की,
अन्तर्जाल पर बस ’गुगुल-सर्च’ करना होगा ॥
कर लो अब तो मिलने का वादा आशिको,
बिन सोचे-समझे, और किसी भी शर्त पर,
छुपा लें चाहे आशिको के घरवाले कही भी,
ठिकाना ढूंढ लेंगा दिलजला,’गुगुल-अर्थ’ पर॥
न ही किसी की नजरों का भय सतायेगा,
और न किसी को कोई सा भी फ़ाइन देंगे,
जब भी वेलेंटाइन का फूल देंगे साथी को,
बेहिचक, सुन्दर-सुगंधित, औन-लाइन देंगे॥
अब और न छुप-छुप के मिलने की दरकार,
न डरने की जरुरत किसी मेल-फ़ीमेल से,
बतियाने का दिल करे जब कभी मह्बूब से,
दिल खोल के कर लो बात, ’जी-मेल’ से ॥
सुनशान पार्क के कोने, वीरान सड्के देखकर,
शिव-राम सेना सोचे कि दुनिया सुधर गई,
देखकर धमाल इस हाई-टेक आशिकी का ,
’गोदियाल’ सोचे, बेटा, अपनी तो उमर गई॥
और यह कविता पिछले वेलेंटाइन डे पर पोस्ट की थी ;
एक बार प्यार जताने की चाह
जब हमारे भी दिल में आई,
शान्ति की राह छोड़ कर,
क्रान्ति की राह पकड़,
इजहार-ए-प्यार के खातिर,
एक वेलेंटाईन डे पर,
जरुरत से ज्यादा उत्साहित मैं,
मुझे याद है,
मैंने भी भेजा था एक फूल गोभी का,
अपनी प्रियतमा के घर,
और फिर उसी शाम को किसी ने
मेरा दर खटखटाया था,
अपने संदेशवाहक के मार्फत,
उनका जबाब आया था,
चंद शब्दों में लिखा था;
हे मेरे मजनू !
सुनहरी इस भोर में
महगाई के इस दौर में,
तकलीफ उठाने की जरुरत क्या थी,
'ढाई आखर प्रेम' के में ही,
खा लिए होते गोते ,
और जब तुमने खर्चा कर ही डाला था,
ऐ जानेमन !
तो दो चार आलू भी
साथ भेज दिए होते !!!
मम्मी-पापा की प्रेम कहानी !
मै अपनी बीबी से बोला,
अरे वो , सुनों न मेरी रानी,
आज सुनाता हूं तुम्हे अपने
मम्मी - पापा की प्रेम कहानी !
जब मेरे पापा स्वर्गवासी नही थे,
दामपत्य जीवन मे प्रवासी नही थे,
साठ पार कर गये थे पर बयासी नही थे,
तब एक बार जश्न के दरमियां रंगत मे आके,
मेरी मम्मी का हाथ थामे कुछ इसतरह कहे थे;
ऎ मेरी जोहरा जबी, तुम अभी तक हो हंसी,
और मैं जवां, तुझपे कुरबां वो मेरी जान, मेरी जान !
मेरी मम्मी ने भी
मुस्कुराते हुए
कहा था,
तुमपे
कुर्वां
वो
मेरी
जान
मेरी
जान !
यह सुनकर
दिखावे को हम भी भडक गए ,
मौका देख दो पैग और घडक गए !
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