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Monday, February 1, 2010

हे कृष्ण ! अब तुम्हारा क्या लक्ष्य है ?

आज यहाँ खुद ही, सवालों में घिरा यक्ष है,
अपने ही घर से बेघर, हो गया निष्पक्ष है !

ईमान का बेटा दीन, दर-दर भटक रहा है,
शठ का बेटा कपट, भ्रष्टता में हुआ दक्ष है !!

धूर्त का घर हर रोज, मना रहा है दीवाली,
वीरान-सुनशान पडा, हरीशचंद्र का कक्ष है !

चोर-उचक्के, लुच्चे-लफंगे, गद्दी पर काबिज हुए,
कौवा मूंग दल रहा यहाँ, हंस के वक्ष है !!

लूट-खसौट, अत्याचार-दुराचार, सब शीर्ष गए,
जो हो रहा, वो छुपा नहीं, आपके समक्ष है !

हे कृष्ण, भूल गए तुम, यदा-यदा ही धर्मस्य..
गोदियाल पूछता है तुम्हे, तुम्हारा क्या लक्ष है ??

12 comments:

vikas mehta said...

आज यहाँ खुद ही, सवालों में घिरा यक्ष है,
अपने ही घर से बेघर, हो गया निष्पक्ष है !

aapki pahli lain sabse achhi lgi vaise sabhi achhi hai lekin yah lain mujhe sabse achhi lgi
धूर्त का घर हर रोज, मना रहा है दीवाली,
वीरान-सुनशान पडा, हरीशचंद्र का कक्ष है !

'अदा' said...

आज यहाँ खुद ही, सवालों में घिरा यक्ष है,
अपने ही घर से बेघर, हो गया निष्पक्ष है !
bahut badhiya likha hai Godiyal sahab,
Behtareen lagi ye rachna aapki..

जी.के. अवधिया said...

"चोर-उचक्के, लुच्चे-लफंगे, गद्दी पर काबिज हुए,
कौवा मूंग दल रहा यहाँ, हंस के वक्ष है!!"

सत्य को प्रतिपादित करती हुईं पंक्तियाँ!

वाणी गीत said...

सवालों में उलझा ही गयी कविता .....!!

डॉ टी एस दराल said...

हे कृष्ण, भूल गए तुम, यदा-यदा ही धर्मस्य..
गोदियाल पूछता है तुम्हे, तुम्हारा क्या लक्ष है ??

हमारा भी यही सवाल है।

मनोज कुमार said...

कवि का कृष्ण से साक्षात्कार दिलचस्प है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...

ईमान का बेटा दीन, दर-दर भटक रहा है,
शठ का बेटा कपट, भ्रष्टता में हुआ दक्ष है !!

ठीक ही तो है,
जैसा बेटा वैसा बाप!

ताऊ रामपुरिया said...

लाजवाब.

रामराम.

दिगम्बर नासवा said...

हे कृष्ण, भूल गए तुम, यदा-यदा ही धर्मस्य..
गोदियाल पूछता है तुम्हे, तुम्हारा क्या लक्ष है ??

गोदियाल साहब ............ सही प्रश्न किया है आपने .......... पूरी कविता ही अपने आप से प्रश्न करती हुई है ....... बहुत खूब

अजय कुमार said...

क्या बात है ,पहले तो आज के हालात को दर्शा दिया और अंत में एक अनुत्तरित प्रश्न । अच्छी रचना , बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सही प्रश्न उठाये हैं....समसामयिक रचना..

संजय भास्कर said...

गोदियाल साहब ............ सही प्रश्न किया है आपने .