इर्द-गिर्द सदा ही घूम पाता, मैंने तो
तुमसे वो धूरी चाही थी, दूरी नहीं,
दिल की बात हम हक़ से कह जाते,
वो सहभागिता चाही थी, मजबूरी नहीं !
मेरे दिल में रखने की आदत बुरी है,
हर ख्वाब दिल के कोने में सजाता हूँ,
इजहार-ए-इश्क पलकें कर लेती है ,
हर बात लबों पे आये, ये जरूरी नहीं !
अक्सर ही ख्वाब तुम्हारे सजाने को,
हरदम आँखे चुराता हूँ रातों को नींद से,
बनाई ख़्वाबों ने जब भी तस्वीर तेरी,
पहुंचाई मुकाम पर है, छोडी अधूरी नहीं !
दिल की दीवारों पर टंगी तेरी तस्वीर में ,
प्रेम की कुंची से इन्द्रधनुषी रंग बुनता हूँ,
हसरते यों तो बहुत रखे था दिल में पाले,
न जाने क्यों ये तमन्नायें होती पूरी नही !
तुमसे वो धूरी चाही थी, दूरी नहीं,
दिल की बात हम हक़ से कह जाते,
वो सहभागिता चाही थी, मजबूरी नहीं !
मेरे दिल में रखने की आदत बुरी है,
हर ख्वाब दिल के कोने में सजाता हूँ,
इजहार-ए-इश्क पलकें कर लेती है ,
हर बात लबों पे आये, ये जरूरी नहीं !
अक्सर ही ख्वाब तुम्हारे सजाने को,
हरदम आँखे चुराता हूँ रातों को नींद से,
बनाई ख़्वाबों ने जब भी तस्वीर तेरी,
पहुंचाई मुकाम पर है, छोडी अधूरी नहीं !
दिल की दीवारों पर टंगी तेरी तस्वीर में ,
प्रेम की कुंची से इन्द्रधनुषी रंग बुनता हूँ,
हसरते यों तो बहुत रखे था दिल में पाले,
न जाने क्यों ये तमन्नायें होती पूरी नही !
23 comments:
हर पंक्ति लाजवाब है जी,
अनुभव कि झलक साफ़ नजर आ रही है,,,,,
कुंवर जी,
बहुत बढ़िया लिखा आपने
"इजहार-ए-इश्क मेरी पलकें कर लेती है ,
हर बात लबों पे आये, ये जरूरी नहीं !"
बेहद उम्दा रचना, सर जी ..............बधाइयाँ !!
दिल की दीवारों पर टंगी तेरी तस्वीर में ,
प्रेम की कुंची से इन्द्रधनुषी रंग बुनता हूँ,
हसरते यों तो बहुत रखे था दिल में पाले,
न जाने क्यों ये तमन्नायें होती पूरी नही !
.....लाजवाब
जनाब बहुत ही सुंदर गजल. धन्यवाद
उफ्फ्फ ये तमन्नायें ...!!
होती नही पूरी
वाह्……………………बहुत ही रोमानी रचना है………………प्रेम मे भीगी हुई।
"दिल की दीवारों पर टंगी तेरी तस्वीर में ,
प्रेम की कुंची से इन्द्रधनुषी रंग बुनता हूँ,
हसरते यों तो बहुत रखे था दिल में पाले,
न जाने क्यों ये तमन्नायें होती पूरी नही !"
बहुत खूब!............
Ume jalwon mein guzar ho ...
ye jaroori to nahi ...
Padh kar Jagjeet ji ki ye GAZAL barbas yaad aa gayi ...
अच्छी सोच और उम्दा प्रस्तुती /
मेरे दिल में रखने की आदत बुरी है,
हर ख्वाब दिल के कोने में सजाता हूँ,
दिल है कि मानता नहीं
बहुत अच्छी रचना
waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah
acchhi lagi
अक्सर ही ख्वाब तुम्हारे सजाने को,
हरदम आँखे चुराता हूँ रातों को नींद से,
बनाई ख़्वाबों ने जब भी तस्वीर तेरी,
पहुंचाई मुकाम पर है, छोडी अधूरी नहीं !
यह काम बहुत ही बढ़िया किया आपने!
चुभन अभी भी है!
मेरे दिल में रखने की आदत बुरी है, हर ख्वाब दिल के कोने में सजाता हूँ,
इजहार-ए-इश्क मेरी पलकें कर लेती है , हर बात लबों पे आये, ये जरूरी नहीं !
वाह!!
(इससे ज़्यादा कुछ नहीं। सब कहना ज़रूरी है का।)
bahut sundar...
खूबसूरत इजहार
सुन्दर प्रसतुति
इर्द-गिर्द सदा ही घूम पाता, मैंने तो
तुमसे वो धूरी चाही थी, दूरी नहीं,
दिल की बात हम हक़ से कह जाते,
वो सहभागिता चाही थी, मजबूरी नहीं !
क्या बात कही गोदियाल जी बहुत बढ़िया लगा...बेहद खूबसूरत मुक्तक..हमें तो बहुत अच्छी लगी विशेष रूप से पहली चार लाइनें बाकी भी बढ़िया है..प्रस्तुति के लिए बधाई
सुन्दर अभिव्यक्ति!
("मेरे दिल में रखने की आदत बुरी है,"
अजी आजकल ये आदत तो सभी में पाई जाती है, दिल में रख लेते हैं और मौका मिलने पर ....)
लाजबाब । यह नेताओँ की आदतों का वैश्वीकरण ।
कितनी चाह अब भी शेष ? अच्छी रचना ।
सुन्दर रचना !!
उम्दा काम
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