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Monday, May 10, 2010

इस बार मेरी माँ ने ख़त नहीं भेजा गाँव से !

कल मदर्स डे के सुअवसर पर मैंने उस बाबत कुछ नहीं लिखा, क्योंकि मुझे अपनी माँ से एक शिकायत है कि उसने मुझे घडियाली आंसू बहाना नहीं सिखाया ! पता नहीं क्यों ? एक दूसरी वजह भी थी , जिसे यहाँ बयाँकर रहा हूँ इन चंद पंक्तियों में ;

इस बार, इस दिन पर
सैर सपाटे नहीं गया, मदर्स डे की नाव से !
अबके यूँ भी मेरी माँ ने
इस अवसर पर ख़त नहीं भेजा गाँव से !!
पिछली जो चिट्ठी आई थी,
लिख भेजा था उसने अपना दुखड़ा !
यह भी एक वजह रही थी कि
इस मदर्स डे पर रहा उखडा- उखडा !!
अश्रु ज्योति मोतियाबिंद खा गई,
बूढ़ी काया लाचार हो गई पाँव से !
अबके यूँ भी मेरी माँ ने
इस अवसर पर ख़त नहीं भेजा गाँव से !!

17 comments:

डॉ टी एस दराल said...

मदर्स डे मनाएं या न मनाएं , हकीकत तो पीछा नहीं छोड़ेगी।
हम भारत वासियों के लिए तो हर दिन मदर्स डे ही होता है।
आप माताजी को संभालिये गोदियाल जी ।

ललित शर्मा said...

माँ की याद के लिए या उसके आंचल की छांव के लिए किसी दिन की आवश्यक्ता नहीं है।
उसका स्नेह वात्सल्य तो हमेशा अपने पुत्र/पुत्रियों के साथ होता है।

आभार

दिलीप said...

ishwar kare aapki mataji ke sab kasht mite aur wo purn swasthya labh le...

zeal said...

wish her long life and good health

VICHAAR SHOONYA said...

गोंदियल साहब इन एक दिनिया प्यार मोहब्बत दिखने और मानाने वाले लोगों के बीच आपकी स्पष्टवादिता काबिले तारीफ है। आपकी इस सोच को मेरा नमन।

Mithilesh dubey said...

आप इतनी जल्दि टूट कैसे सकते हैं , माँ जी का ख्याल रखिए और खुश रहिए ।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मां तो मां ही होती है, उसके जैसा कोई दूसरा नहीं..

जी.के. अवधिया said...

गोदियाल जी, माता चाहे चिट्ठी भेजे या ना भेजे किन्तु अपने सन्तान की कामना तो सदैव ही उसके हृदय में वास करती रहती है।

kunwarji's said...

माँ तुझे सलाम रोज की ही तरह आज भी!

कुंवर जी,

SANJEEV RANA said...

बहुत बढ़िया गोदियाल साहब
कोई बात नही फोन पे बात कर लो
वैसे भी अगर प्यार हैं तो हर दिन मदर डे मनेगा

ताऊ रामपुरिया said...

हर डे ही मां की कृपा से होता है.

रामराम.

वन्दना said...

uff .......dard hi dard bhar diya hai........kuch kahne ki himmat nahi hai.

दिगम्बर नासवा said...

वाह ... बहुत मार्मिक ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अश्रु ज्योति मोतियाबिंद खा गई,
बूढ़ी काया लाचार हो गई पाँव से !
अबके यूँ भी मेरी माँ ने
इस अवसर पर ख़त नहीं भेजा गाँव से !!

बहुत मार्मिक.....

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल said...

सर माँ के आंचल मे ब्रह्माड छिपा होता है... जय हो!

राजेन्द्र मीणा said...

ऐसा ..हमारे आस पास ..कहीं भी दिख जाता है ...आज-कल जीवन की व्यस्तता में ..बच्चे अपने माँ-बाप पर ध्यान नहीं दते ,,,,, ........मैं भी कुछ-कुछ ऐसा ही हूँ पर आपकी कविता पढ़कर सुधरने की कोशिश करूंगा .....धन्यवाद इस प्रस्तुति के लिए

ढपो्रशंख said...

आज हिंदी ब्लागिंग का काला दिन है। ज्ञानदत्त पांडे ने आज एक एक पोस्ट लगाई है जिसमे उन्होने राजा भोज और गंगू तेली की तुलना की है यानि लोगों को लडवाओ और नाम कमाओ.

लगता है ज्ञानदत्त पांडे स्वयम चुक गये हैं इस तरह की ओछी और आपसी वैमनस्य बढाने वाली पोस्ट लगाते हैं. इस चार की पोस्ट की क्या तुक है? क्या खुद का जनाधार खोता जानकर यह प्रसिद्ध होने की कोशीश नही है?

सभी जानते हैं कि ज्ञानदत्त पांडे के खुद के पास लिखने को कभी कुछ नही रहा. कभी गंगा जी की फ़ोटो तो कभी कुत्ते के पिल्लों की फ़ोटूये लगा कर ब्लागरी करते रहे. अब जब वो भी खत्म होगये तो इन हरकतों पर उतर आये.

आप स्वयं फ़ैसला करें. आपसे निवेदन है कि ब्लाग जगत मे ऐसी कुत्सित कोशीशो का पुरजोर विरोध करें.

जानदत्त पांडे की यह ओछी हरकत है. मैं इसका विरोध करता हूं आप भी करें.