कुछ शर्म खरीदनी है,
अपने लिए भी और
अपने देशवासियों के लिए भी !
मुझे लगता है कि शरीर में
विटामिन की तरह इसकी भी
नित कमी होती जा रही,
लाख जुतियाने पे भी
ये कम्वख्त शर्म नहीं आ रही !
हर शख्स का
भ्रष्टाचार के दलदल में खिला चेहरा
यहाँ कमल जलज लगता है ,
और हवाओं का रुख भी
जरुरत से ज्यादा निर्लज्ज लगता है !
अरे भाई कही तो मिलती होगी ?
ढूंढो इसे, यह सन्देश है मेरा,
स्वदेशियों के लिए भी,
और प्रवासियों के लिए भी !
कुछ शर्म खरीदनी है,
अपने लिए भी और
अपने देशवासियों के लिए भी !!
Friday, May 7, 2010
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26 comments:
ये शर्म कहीं नहीं मिलेगी गोदियाल जी ,बल्कि इसका तो हमलोगों के एकजुटता के फार्मूले पे कारखाना खोल कर निर्माण करना होगा / कहिये आप तैयार हैं ?
अजी गोदियाल जी, किसे ढूँढ रहे हैं आप? शर्म तो बरसों पहले ही काल कालवित हो चुकी है।
इज्ज़त बेच कर कभी भी कहीं भी देशार्मी मिल जायेगी,लेकिन ये शर्म......?
कहीं पता चला तो जरुर बताऊंगा जी,,,,
कुंवर जी,
शर्म खरीदने की जरुरत है. मगर कहाँ से? इसके लिए पैसे नहीं "हिम्मत" जुटानी होगी.
The message has been wonderfully conveyed.
Beautiful creation !
पता नहीं कहाँ मिलेगी?
अब तो शर्म को भी शर्म आती है
दुनिया की बेशर्मी के बाज़ार में
मुँह अपना छुपा खो जाती है
गोदियाल जी,
अभी भी मेरे पास शर्म है, लेकिन मैं बेचूंगा नहीं। हां, आपको उधार चाहिये तो ले लीजिये। कोई अतिरिक्त चार्ज नहीं लूंगा, जब आपको शर्म आयेगी तब लौटा देना।
जब हम्माम मे सब नंगे हों तो भला ये कहां मिलेगी?!
होगी कहीं छुपी!
sorry! stock finished...
अरे भाई जी शर्म ढूंढ़रहे हैं मेरे ब्लॉग पर आइये चारों तरफ शर्म बिखरी मिलेगी। हा हा हा ........
देखने को बहुत मिल जाती हैं शर्म
पर जब खोजने चले तो फिर पता नही कहा गायब हो जाती हैं .
बाहर देखू तो दिखाई नही देती मगर जब अपने किये हुए पे पछतावा आता हैं तो अपने अंदर मैंने इसे महसूस किया हैं
आजकल तो लोग शर्म को गहने की तरह छुपाते हैं,
शर्म को बड़ी बेशर्मी के साथ शर्मसार कर देते हैं ,
मान सम्मान की बात तो हुई गुजरे जमाने की बात,
अब तो लोग पल में दूसरे की इज्जत को तार-तार कर देते हैं.
क्या मैंने गलत कहा क्या?
aasharam (aa + sharam) vyavstha dobara lagoo ker de to ??
Brahmacharya, Grahasta, Vanaprastha and Sanyasa
sharam aa sakti hai
aa... sharam ..... hai na???
लाख जुतियाने पे भी
ये कम्वख्त शर्म नहीं आ रही !
SHARM TO BECH DI HAI SABHI NE........
@ नीरज जाट जी ,टिपण्णी पसंद आई !
अन्य सभी ब्लोगर मित्रों का भी उनकी मनोरंजक टिप्पणियों के लिए हार्दिक शुक्रिया !
नेता और भ्रष्ट अफसर सब बेच चुके हैं...
पता चले तो हमें भी बताइएगा।
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पड़ोसी की गई क्या?
गूगल आपका एकाउंट डिसेबल कर दे तो आप क्या करोगे?
भारत मै आज लोग शर्म बेच कर धन इक्ट्टा कर रहे है, ओर आप फ़िर से शर्म को ढूढ रहे है जनाब??
बहुत किल्लत है भाई
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 08.05.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
.
.
.
देव,
आप निकले हैं
ढूंढने इसको
और खरीदने भी
सोच सोच कर
डूब मरे जा रहे हैं
हम तो
शरम से!
...:)
शर्म चाहिए ... हमारे पास आइये .......कब से पड़ी है ....कीड़े नहीं लगे हो तो ..बेशक ले जाइए (कविता अंश) :):):)० http://athaah.blogspot.com/
वाह ! वाह !
आप भी क्या क्या लिख देते हो भाई साहब ! बरसों से शर्मिंदा होने वाली हरकतों को भूल जाने की आदत डाल ली है और और प्राइमरी में पढ़े पाठ याद रहे नहीं !
सादर !
कम से कम अपने देश में तो ये अब लुप्त सी चीज़ है .... विदेशों में तो पहले भी नही थी ये .... अच्छा व्यंग है गौदियाल साहब
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