जीना है तो आश जगा, दिल में इक अहसास जगा,
हर दरिया को तर सकता है, मन में यह विश्वाश जगा!
हलक उतरता जाम न हो, साकी फिर बदनाम न हो,
तृप्ति का कोई छोर नहीं है, पीना है तो प्यास जगा!
हमदर्द तेरा दिल तोड़ गया, तुझे राह अकेला छोड़ गया ,
आयेगा फिर हमराही बनके, ये तीरे-जिगर अभिलाष जगा!
दुःख देने वाला दुखी नहीं, सुख ढूढने वाला सुखी नहीं,
निराशाओं में भी आशाओं के दायरे अपने पास जगा!
पीछे छूटे का अफ़सोस न कर, किस्मत का दोष न कर,
चित-अन्धकार को रोशन कर दे, दीप वो बेहद ख़ास जगा!
Sunday, May 2, 2010
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21 comments:
बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद
वाह जी, गोदियाल साहब।
जगा कर ही छोड़ोगे।
आयेगा फिर हमराही बनकर, तीरे-जिगर अभिलाष जगा!
अभिलाषा की ताकत का सही आकलन
सुन्दर
bhaav achhe hain ...par
जीना है तो आश जगा, दिल में इक अहसास जगा,
हर दरिया को तर सकता है, मन में यह विश्वाश जगा!
हलक उतरता जाम न हो, साकी फिर बदनाम न हो,
तृप्ति का कोई छोर नहीं है, पीना है तो प्यास जगा!
in do ashaar ke baad lay kaheen kho si gayi .. baharhal ek achhi rachna
दुःख देने वाला दुखी नहीं, सुख ढूढने वाला सुखी नहीं,
निराशाओं में भी आशाओं के दायरे अपने पास जगा!
शानदार प्रस्तुति ....मान गए जनाब
बहुत बढ़िया...
वाह वाह!! हर शेर लाजबाब!!
बहुत उम्दा!
बहुत बढिया!!
भाव बड़े अच्छे थे.. अतः लोभ सम्वरण न कर पाया इनको अपनी छोटी समझ से एक बहर में लाने की... लयबद्धता आ गई है... धृष्टता के लिए क्षमा चाहूँगा..
जीना है तो आस जगा, दिल में इक अहसास जगा,
हर दरिया तर सकता है तू, मन में यह विश्वास जगा!
हलक उतरता जाम न हो, साकी फिर बदनाम न हो,
तृप्ति का कोई छोर नहीं है, पीना है तो प्यास जगा!
बेदर्दी दिल तोड़ गया जो, बीच राह में छोड़ गया जो,
फिर हमराही बनकर आए, तीरे-जिगर अभिलाष जगा!
दुःख देने वाला दुखी नहीं, सुख ढूंढने वाला सुखी नहीं,
तम काट निराशा के, आशा के दायरे अपने पास जगा.
कुछ छूट गया अफ़सोस न कर, किस्मत का अपने दोष न कर,
चित-अन्धकार को रोशन कर दे, दीप वो बेहद ख़ास जगा!
अंधियारे को रौशन कर दे ...दीप बेहद ख़ास जगा ...
आस जगा ...
उत्साह से लबरेज सुन्दर कविता ....
गोदियाल जी !
मन में आशाओं का संचार करते शानदार अशआरों के लिए आपको बधाई!
गोदियाल जी,
हमारा तो हर पैग ही पहला होता है
जब तक खतम नही हो जाती बोतल।
सभी शेर सवासेर हैं, बधाई
@ स्वप्निल कुमार जी एवं @संवेदनाओं के स्वर जी ,
आपका शुक्रिया , कुछ संशोधन कर लिए है !
पीछे छूटे का अफ़सोस न कर, किस्मत का दोष न कर,
चित-अन्धकार को रोशन कर दे, दीप वो बेहद ख़ास जगा
bahut acha godiyaal ji
aise hi likhtge raho
hum h na padhne ke liye
बहुत सुन्दर संदेश देते शेर्।
हलक उतरता जाम न हो, साकी फिर बदनाम न हो,
तृप्ति का कोई छोर नहीं है, पीना है तो प्यास जगा
वाह!भावनाओं के हर छोर को छूती पंक्तियाँ!अब तक तो प्यास बुझाने के लिए ही मारे-मारे फिरे थे,अब प्यास जगाने की भी सोचेंगे....
कुंवर जी,
प्रशंसनीय
... बेहद प्रभावशाली
हर शेर लाजबाब!!
हलक उतरता जाम न हो, साकी फिर बदनाम न हो,
तृप्ति का कोई छोर नहीं है, पीना है तो प्यास जगा!
वाह क्या खूब ! लाजवाब !
बस ये शेर अपने नेता लोगों के कान तक न पहुंचे ... वैसे ही वे खून के प्यासे रहते हैं :)
दुःख देने वाला दुखी नहीं, सुख ढूढने वाला सुखी नहीं,
निराशाओं में भी आशाओं के दायरे अपने पास जगा ..
सुंदर रचना है ... बहुत ही लाजवाब ....
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