बहुत बोलते सुना है
तुमको कि तुम,
ये कर दोगे, वो कर दोगे !
चलते हुए के कानों में भी,
मिश्री कि तरह जहर भर दोगे !
अपनी माँ का दूध पिया है तो
हमारे भी कान भर के दिखाओ !
ज़रा दूध का दूध और
पानी का पानी कर के दिखाओ !
ये होता कैसे है
मुझे भी सीखना है,
क्योंकि मुझे ये ख्याल आ रहा,
मेरा मिल्कमैन
आजकल
पानी बहुत मिला रहा !
मैं तो क्या
पूरी बस्ती, इसी तरह जी रही !
और साथ ही यह भी कहता है कि
भैंस, गर्मी की वजह से
नहर का पानी ज्यादा पी रही !!
Saturday, May 1, 2010
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11 comments:
बहुत ही बढ़िया हास्य रचना है ... शुरुआत अलग ढंग से करके एक अप्रत्यासित मोड दे दिए ... पढके मज़ा आ गया ...
इसमें भला दूधवाले का भी कोई दोष है?
मजेदार
वाह वाह जी, क्या बात है,
वाह जलईजले जी... यूं ही और टिप्पणियां कर दो अभी टाप पर पहुंच जायेगा यह ब्लाग जिसके लिये तुम्हें धन्यवाद अग्रिम में..... कम से कम तुम्हारी टिप्पणियों का कुछ फायदा तो होगा..
वाह बहुत खूब!
मिश्रित दूध में मिश्रित पानी!
यानि शुद्ध कुछ भी नही!
मज़ा आ गया पढकर... आरम्भ की पंक्तियों में लगा था वीर रस की कोई कविता होगी... लेकिन अंत ऐसा होगा सोचा न था... अच्छा किया जो हिंदी कविता में मिल्क्मैन शब्द का प्रयोग किया है आपने… आजकल तो गुलज़ार साब और प्रसून जोशी जैसे लोगों को इनके हिंदी शब्द प्रयोग करने पर गानों से वे शब्द बदअलने पड़े...
वाह! वाह! ....बहुत शानदार रचना...
बाद में ध्यान दिया कि बहुत सारे कमेंट मिटा दिए गए हैं.. कहीं वही कारण तो नहीं...
गोदियाल साहब कन्फर्म कर लीजिये , पानी ही मिला रहा है ।युरिया आदि तो नहीं----
और साथ ही यह भी कहता है कि
भैंस, गर्मी की वजह से
नहर का पानी ज्यादा पी रही !!
बहुत खूब ....!!
फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
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