My Blog List

Thursday, February 4, 2010

जीना तो बस टाइम पास रह गया !

मकसद न यहाँ जीने का,अब कुछ ख़ास रह गया,
यूँ समझिये, जीना तो, बस टाइम पास रह गया !

ढोये जा रहे बोझ को, कुली की तरह दिन-रात,
स्टेशन पर गाडी आई-गई,यही अहसास रह गया !

मंजिल-ए-मुसाफिर ने कभी,हाल-ए-सफ़र न सुनाया,
है बेरहम ये दुनिया सोचकर,दिल उदास रह गया !

अपने ही पैमानों पर कभी , जीने चले थे जिन्दगी,
वक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया !

पड़ते जमीं पर थे कदम जिसके, शुतुरमुर्ग की तरह
बैसाखियों पर सिमटा क्यों,बन्दा-ए-बिंदास रह गया !

16 comments:

dipayan said...

वास्तविकता ज़िन्दगी की । खूब कहा आपने ।

ललित शर्मा said...

अपने ही पैमानों पर कभी , जीने चले थे जिन्दगी,
वक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया !

बेहतरीन, आभार

ajit gupta said...

आप आजकल निराशा की बात क्‍यों कर रहे हैं। ब्‍लाग है ना उदासी मिटाने के लिए। वैसे बेहतरीन रचना है।

Mired Mirage said...

बढिया कविता! इसी को तो समय क फेर कहते हैं.
घुघूती बासूती

sada said...

बेहतरीन शब्‍दों के साथ सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

निर्मला कपिला said...

अपने ही पैमानों पर कभी , जीने चले थे जिन्दगी,
वक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया !
magar ham to blaag par aa kar sab udaasee bhagaa dete haiM racanaa bahut acchee hai aabhaar

M VERMA said...

एहसासो को बेहतरीन शब्द दिये है
बहुत सुन्दर

'अदा' said...

bahut khoobsurat ashaar hain..
badhaii..

रंजना said...

अपने ही पैमानों पर कभी , जीने चले थे जिन्दगी,
वक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया !

Waah !!! Bahut hi sundar rachna...

Udan Tashtari said...

ढोये जा रहे बोझ को, कुली की तरह दिन-रात,
स्टेशन पर गाडी आई-गई,यही अहसास रह गया !

-बहुत उम्दा, वाह!

Arvind Mishra said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति !वाह क्या कहने !!

मनोज कुमार said...

अपने ही पैमानों पर कभी , जीने चले थे जिन्दगी,
वक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया !
ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...

मकसद न यहाँ जीने का,अब कुछ ख़ास रह गया,
यूँ समझिये, जीना तो, बस टाइम पास रह गया !

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

बवाल said...

क्या बात है ! अहा !!

वन्दना said...

zindagi ki vastvikta ki sundar abhivyakti.

दिगम्बर नासवा said...

ढोये जा रहे बोझ को, कुली की तरह दिन-रात,
स्टेशन पर गाडी आई-गई,यही अहसास रह गया ..

अपने ही देश में अपनों के साथ ऐसा हो रहा है ...... सत्य तो है पर इतना कड़वा ........