हर तलाश तुम्हारी,
अंजाम तक पहुचाता !
काश ! अगर मैं भी
'गुगुल सर्च' जैसा बन पाता !!
ज्यों तलाशने
अपने मन की जिज्ञासा,
कोई जिज्ञासू,
शीघ्र पहुच जाता है,
'गुगुल सर्च' पर
और अंतर्जाल के सहारे,
सर्च विन्डो पर करता है
कुछ शब्द टंकित ।
जब कभी तुम भी,
अपने दिल का संशय मिटाने
ढूढने निकलती,
प्यार की परिभाषा,
और अपनी नरम हथेलिया,
मेरे सीने पे टिकाकर ,
कोमल उंगलियों से
मेरे दिल की खिडकी पर,
आहिस्ता-आहिस्ता,
प्रेम के ढाई अक्षर
जब करती अंकित ॥
क्षणभर मे तुम्हारे दिल के
अहसासों को समझ जाता !
काश ! अगर मैं भी
'गुगुल सर्च' जैसा बन पाता !!
और फिर ,
तुम्हारे नयनों से नयन मिला,
मुस्कुराता हुआ,
अपने चेहरे और
अधरों की स्क्रीन पर,
दुनियां भर का प्यार और प्रेम,
तुम्हारे लिये
और सिर्फ़ तुम्हारे लिये,
डिसप्ले कर देता,
ढेर सारे विकल्प
तुम्हारे समक्ष होते,
और तुम रह जाती
यह सब देखकर चकित ॥
असीम कितना है मेरा प्यार,
दिल का हर पन्ना बतलाता !
काश ! अगर मैं भी
'गुगुल सर्च' जैसा बन पाता !!
अंजाम तक पहुचाता !
काश ! अगर मैं भी
'गुगुल सर्च' जैसा बन पाता !!
ज्यों तलाशने
अपने मन की जिज्ञासा,
कोई जिज्ञासू,
शीघ्र पहुच जाता है,
'गुगुल सर्च' पर
और अंतर्जाल के सहारे,
सर्च विन्डो पर करता है
कुछ शब्द टंकित ।
जब कभी तुम भी,
अपने दिल का संशय मिटाने
ढूढने निकलती,
प्यार की परिभाषा,
और अपनी नरम हथेलिया,
मेरे सीने पे टिकाकर ,
कोमल उंगलियों से
मेरे दिल की खिडकी पर,
आहिस्ता-आहिस्ता,
प्रेम के ढाई अक्षर
जब करती अंकित ॥
क्षणभर मे तुम्हारे दिल के
अहसासों को समझ जाता !
काश ! अगर मैं भी
'गुगुल सर्च' जैसा बन पाता !!
और फिर ,
तुम्हारे नयनों से नयन मिला,
मुस्कुराता हुआ,
अपने चेहरे और
अधरों की स्क्रीन पर,
दुनियां भर का प्यार और प्रेम,
तुम्हारे लिये
और सिर्फ़ तुम्हारे लिये,
डिसप्ले कर देता,
ढेर सारे विकल्प
तुम्हारे समक्ष होते,
और तुम रह जाती
यह सब देखकर चकित ॥
असीम कितना है मेरा प्यार,
दिल का हर पन्ना बतलाता !
काश ! अगर मैं भी
'गुगुल सर्च' जैसा बन पाता !!
14 comments:
बहुत गूगलमय कविता है बंधु। बधाई।
असीम कितना है मेरा प्यार,
दिल का हर एक पन्ना बतलाता !
काश ! अगर मैं भी
'गुगुल सर्च' जैसा बन पाता !!
शानदार रचना.
रामराम.
गुगुल का नया प्रयोग कर डाला आपने कविता में। बहुत बढिया!!बधाई स्वीकारें।
गुगुल सर्च' जैसा बन पाता
वाह क्या दूर की सोच लाये हैं आप...विलक्षण रचना...आपकी इस सोच को सलाम...
नीरज
वाह गोदियाल जी! क्या कल्पना है!
"काश ! अगर मैं भी
'गुगुल सर्च' जैसा बन पाता!!"
फिर तो विज्ञापन से कमाई भी जोरदार होती! :)
गूगल सर्च ..अद्भुत बिम्ब है गोदियाल साहब यह तो ..मज़ा आ गया ।
शानदार प्रयोगात्मक कविता.
waah kya baat hai.
हा हा!! गुगली कविताई..
कहीं गुगल हिन्दी वाले इसे खरीदने न आ धमकें. :)
हा हा हा ! आज तो गुगली छोड़ दी भाई।
बढ़िया रोमांस है।
बेहतरीन। लाजवाब।
अद्भुत।
असीम कितना है मेरा प्यार,
दिल का हर पन्ना बतलाता !
काश ! अगर मैं भी
'गुगुल सर्च' जैसा बन पाता !!
धारदार गुगली है ये गूगल सर्च....बहुत खूब
गूगल के माध्यम से गुगली मारी है। बढिया प्रयोग। बधाई।
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