न्याय की राह मत तजो,
अन्याय को भी मत सहो !
लालच बुरी बला है दोस्तों ,
थोडा खाओ और सुखी रहो !!
एक दिन यहाँ सब का सब
रह जाएगा धरा का धरा,
आजतक कम खाकर भी
शायद ही कोई हो मरा,
झूठ बोलकर हासिल क्या होगा,
जहां तक हो सके सत्य कहो !
लालच बुरी बला है दोस्तों ,
थोडा खाओ और सुखी रहो !!
दौलत के पीछे पागल हुआ,
आज सारा जग-जमाना है !
भुल गये, खाली हाथ आये थे
और खाली ही हाथ जाना है !!
पूत-सपूत निकल आये बस,
भावनाओ में मत बहो !
लालच बुरी बला है दोस्तों ,
थोडा खाओ और सुखी रहो !!
Monday, February 8, 2010
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11 comments:
इस कविता में से कोई भी ...एक भी बात नहीं फोल्लो करता ना करेगा.... इसलिए सब भाग गए...... इतनी शानदार और सुंदर कविता है...अगर जीवन में उतार लें तो जीवन स्वर्ग हो जाए....
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति...
बहुत ही सुन्दर शब्दों का समावेश इस रचना में शब्दों के साथ संदेश भी बहुत ही बढि़या, बधाई के साथ शुभकामनायें ।
थोडा खाओ और सुखी रहो !!
godiyal jee aajkal kha thoda khane wale log bache hai jo bache hai vah bhi or ki rah pakd lete hai
रिश्वत खाने वाले तो कहते हैं कि थोड़ा खाओ और दुखी रहो। आज तो लोग खाने के ही पीछे पड़े हैं और आप उन्हें परेशान कर रहे हैं। महफूज अली जी भी यही कह रहे हैं कि देखो सब भाग गए ना?
पूत-सपूत निकल आये बस,
भावनाओ में मत बहो !
लालच बुरी बला है दोस्तों ,
थोडा खाओ और सुखी रहो !!
बहुत सुंदर और सटीक बात कही.
रामराम.
भई हमें तो भूख बहुत लगाती है!
आपकी कविता से प्यास तो कुछ मिटी है!
मानवीय संवेदना की आंच में सिंधी हुई ये कविता हमें मानवीय रिश्ते की गर्माहट प्रदान करती है।
सुन्दर संदेश देती रचना.
थोड़ा खाओ ...........
पर खाओ तो !
बहुत ही सुन्दरता से आपने जीवन की सच्चाई को प्रस्तुत किया है! इस शानदार और बेहतरीन रचना के लिए बधाइयाँ !
झूठ बोलकर हासिल क्या होगा,
जहां तक हो सके सत्य कहो !
लालच बुरी बला है दोस्तों ,
थोडा खाओ और सुखी रहो ...
सच कहा है गौदियाल जी ......... सच कहना और सुनने का प्रयास करना चाहिए .... सच में ही जीवन का सार होना चाहिए .......
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