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Wednesday, December 9, 2009

जाने क्यों अबके, साकी ने भी पिलाई नहीं !

उनके देखे से आ जाती है हर बारी चेहरे पे रौनक,
मगर इस बारी नयनों ने, कोई उम्मीद दिलाई नहीं !
यूँ दिल बहलाने को मयखाने से भी होकर गुजरे थे,
पर न जाने क्यों अबके, साकी ने भी पिलाई नहीं !!

पतझड़ की बारिश को पैमाने में भर लिया आखिर,
बहारों की बारात में अपनी चाहत शुमार हो पाई नहीं !
किसी गैर के दर पे से तो हमने कुछ माँगा न था,
उनकी हर चीज यूँ भी अपनी ही तो थी, पराई नहीं !!

प्यासे ही लौट आये बड़े बेआबरू होकर उस कूचे से,
भरम था, वह आयेगी हाथ पकड़ने, पर आई नहीं !
थोड़ा और जी लेते, गर इक जाम पिला दिया होता,
खैर, ये शायद मेरी बेरुखी थी, उनकी रुसवाई नहीं !!

पलकों में छुपी आँखों से ही शराब-ए- दीदार कर लेते ,
पर वो थे कि इक बार भी हमसे नजरे मिलाई नहीं !
यूँ दिल बहलाने को मयखाने से भी होकर गुजरे थे,
पर न जाने क्यों अबके, साकी ने भी पिलाई नहीं !!



वैसे अपना ही लिखा एक पुराना शेर याद आ रहा है,
कर कुछ ऐसा कि रिश्तों की पोटली तार-तार हो जाए !
इसबार इतना पिला साकी, कि हम भी पार हो जाए !!

15 comments:

'उदय' said...

... बहुत खूब !!!!

अजय कुमार said...

भरम था, वह आयेगी हाथ पकड़ने, पर आई नहीं !

क्या बात है गोदियाल जी , सब ठीक तो है

दिगम्बर नासवा said...

यूँ दिल बहलाने को मयखाने से भी होकर गुजरे थे,
पर न जाने क्यों अबके, साकी ने भी पिलाई नहीं ...

बहुत खूब ......... आज कुछ बदला हुवा मिज़ाज़ है ............ सब ठीक तो है ...... लाजवाब लिखा है ..........

'अदा' said...

गोदियाल जी...
दो कारण हो सकते हैं ....
या तो वो 'ड्राई डे' था या फिर पिछली उधारी बाकी रही होगी....
हा हा हा हा हा
ये तो मज़ाक था लेकिन कविता बहुत खूबसूरत बनी है....
वैसे पीने-पिलाने का तजुर्बा मुझे है नहीं.....फिर भी साकी को ऐसा नहीं करना चाहिए था...ऐसा मुझे लगता है...ये गलत बात है....

नीरज गोस्वामी said...

छोटे छोटे सरल शब्द और गहरी गहरी बातें...बहुत खूब जनाब....वाह...पुरानी बोतल में नयी शराब का मज़ा...
Neeraj

डॉ टी एस दराल said...

आज तो ग़ालिब का असर नज़र आ रहा है, गौदियाल जी।
बहुत खूब लिखा है।

वन्दना said...

jo bin piye chadh jaye
us may ka jawab nhi

shayad isi karan saki ne bhi pilayi nhi

महफूज़ अली said...

. बहुत खूब !!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...

उनके देखे से आ जाती है हर बारी चेहरे पे रौनक,
मगर इस बारी नयनों ने, कोई उम्मीद दिलाई नहीं !
यूँ दिल बहलाने को मयखाने से भी होकर गुजरे थे,
पर न जाने क्यों अबके, साकी ने भी पिलाई नहीं !!

बहुत बढ़िया!
दूसरा अमीर मिल गया होगा!

apnesapne said...

थोड़ा और जी लेते, गर इक जाम पिला दिया होता,
खैर, ये शायद मेरी बेरुखी थी, उनकी रुसवाई नहीं

मनोज कुमार said...

थोड़ा और जी लेते, गर इक जाम पिला दिया होता,
खैर, ये शायद मेरी बेरुखी थी, उनकी रुसवाई नहीं !!
अच्छी रचना। बधाई।

परमजीत सिँह बाली said...

बहुत बढिया!!

पतझड़ की बारिश को पैमाने में भर लिया आखिर,
बहारों की बारात में अपनी चाहत शुमार हो पाई नहीं !

अर्कजेश said...

बहुत खूब । हर जगह हवा बदली नजर आती है आजकल । यहां भी साकी ने धोख दिया ।

शुक्रिया ।

ललित शर्मा said...

थोड़ा और जी लेते, गर इक जाम पिला दिया होता,
थोड़ा और पी लेते तो हमे हैंग ओवर भी हो जाता,
अच्छा किया साकी ने अपनी समझदारी से पिलाई,
नही तो अंधड़ मे क्या बचता,सब कुछ ही उड़ जाता,
हा हा हा गोदियाल साब बधाई, अब एक और पार्टी पक्की।-आभार

खुशदीप सहगल said...

साकी कह रही है...
हुई महंगी बहुत ही शराब, साल में एकाध बार ही पिया करो...

जय हिंद...