उनके देखे से आ जाती है हर बारी चेहरे पे रौनक,
मगर इस बारी नयनों ने, कोई उम्मीद दिलाई नहीं !
यूँ दिल बहलाने को मयखाने से भी होकर गुजरे थे,
पर न जाने क्यों अबके, साकी ने भी पिलाई नहीं !!
पतझड़ की बारिश को पैमाने में भर लिया आखिर,
बहारों की बारात में अपनी चाहत शुमार हो पाई नहीं !
किसी गैर के दर पे से तो हमने कुछ माँगा न था,
उनकी हर चीज यूँ भी अपनी ही तो थी, पराई नहीं !!
प्यासे ही लौट आये बड़े बेआबरू होकर उस कूचे से,
भरम था, वह आयेगी हाथ पकड़ने, पर आई नहीं !
थोड़ा और जी लेते, गर इक जाम पिला दिया होता,
खैर, ये शायद मेरी बेरुखी थी, उनकी रुसवाई नहीं !!
पलकों में छुपी आँखों से ही शराब-ए- दीदार कर लेते ,
पर वो थे कि इक बार भी हमसे नजरे मिलाई नहीं !
यूँ दिल बहलाने को मयखाने से भी होकर गुजरे थे,
पर न जाने क्यों अबके, साकी ने भी पिलाई नहीं !!
वैसे अपना ही लिखा एक पुराना शेर याद आ रहा है,
कर कुछ ऐसा कि रिश्तों की पोटली तार-तार हो जाए !
इसबार इतना पिला साकी, कि हम भी पार हो जाए !!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
15 comments:
... बहुत खूब !!!!
भरम था, वह आयेगी हाथ पकड़ने, पर आई नहीं !
क्या बात है गोदियाल जी , सब ठीक तो है
यूँ दिल बहलाने को मयखाने से भी होकर गुजरे थे,
पर न जाने क्यों अबके, साकी ने भी पिलाई नहीं ...
बहुत खूब ......... आज कुछ बदला हुवा मिज़ाज़ है ............ सब ठीक तो है ...... लाजवाब लिखा है ..........
गोदियाल जी...
दो कारण हो सकते हैं ....
या तो वो 'ड्राई डे' था या फिर पिछली उधारी बाकी रही होगी....
हा हा हा हा हा
ये तो मज़ाक था लेकिन कविता बहुत खूबसूरत बनी है....
वैसे पीने-पिलाने का तजुर्बा मुझे है नहीं.....फिर भी साकी को ऐसा नहीं करना चाहिए था...ऐसा मुझे लगता है...ये गलत बात है....
छोटे छोटे सरल शब्द और गहरी गहरी बातें...बहुत खूब जनाब....वाह...पुरानी बोतल में नयी शराब का मज़ा...
Neeraj
आज तो ग़ालिब का असर नज़र आ रहा है, गौदियाल जी।
बहुत खूब लिखा है।
jo bin piye chadh jaye
us may ka jawab nhi
shayad isi karan saki ne bhi pilayi nhi
. बहुत खूब !!!
उनके देखे से आ जाती है हर बारी चेहरे पे रौनक,
मगर इस बारी नयनों ने, कोई उम्मीद दिलाई नहीं !
यूँ दिल बहलाने को मयखाने से भी होकर गुजरे थे,
पर न जाने क्यों अबके, साकी ने भी पिलाई नहीं !!
बहुत बढ़िया!
दूसरा अमीर मिल गया होगा!
थोड़ा और जी लेते, गर इक जाम पिला दिया होता,
खैर, ये शायद मेरी बेरुखी थी, उनकी रुसवाई नहीं
थोड़ा और जी लेते, गर इक जाम पिला दिया होता,
खैर, ये शायद मेरी बेरुखी थी, उनकी रुसवाई नहीं !!
अच्छी रचना। बधाई।
बहुत बढिया!!
पतझड़ की बारिश को पैमाने में भर लिया आखिर,
बहारों की बारात में अपनी चाहत शुमार हो पाई नहीं !
बहुत खूब । हर जगह हवा बदली नजर आती है आजकल । यहां भी साकी ने धोख दिया ।
शुक्रिया ।
थोड़ा और जी लेते, गर इक जाम पिला दिया होता,
थोड़ा और पी लेते तो हमे हैंग ओवर भी हो जाता,
अच्छा किया साकी ने अपनी समझदारी से पिलाई,
नही तो अंधड़ मे क्या बचता,सब कुछ ही उड़ जाता,
हा हा हा गोदियाल साब बधाई, अब एक और पार्टी पक्की।-आभार
साकी कह रही है...
हुई महंगी बहुत ही शराब, साल में एकाध बार ही पिया करो...
जय हिंद...
Post a Comment