याद तो होगा आपको
वह सर्कस का जोकर,
तमाम कलाकारों के मध्य,
एक अजीबो-गरीब किरदार,
मकसद सिर्फ़ और सिर्फ़
दर्शकों को हंसाना,
उनका मनोरंजन करना,
और खुद की शख्सियत
सर्कस के जानवरों से भी कम ।
जोकर जो ठहरा,
आम नजरों मे
उसकी अहमियत इतनी
कि बस उसे
एक भावना-विहीन,
नट्खट अन्दाज का
रोल अदा करने वाला,
प्राणी मात्र समझते है हम ।।
दिन ढलने पर जब
कहीं निद्रा की आगोश मे
सिमटने का प्रयास करता है ,
तो सर्द रातों की बयार मे,
उसकी आत्मीय प्राताण्डनायें
उसे बहुत बेचैन कर जाती है ।
आंखो के सीमित आसमान से,
जब ओंस झरने लगती है,
तो वह लिहाफ़ के बादल ओढ,
यही सोचता रहता है कि
क्यों ये कमबख्त सर्द रातें,
जख्मों का दर्द इतना बढा देती है ?
पता नही क्यो ??
वह सर्कस का जोकर,
तमाम कलाकारों के मध्य,
एक अजीबो-गरीब किरदार,
मकसद सिर्फ़ और सिर्फ़
दर्शकों को हंसाना,
उनका मनोरंजन करना,
और खुद की शख्सियत
सर्कस के जानवरों से भी कम ।
जोकर जो ठहरा,
आम नजरों मे
उसकी अहमियत इतनी
कि बस उसे
एक भावना-विहीन,
नट्खट अन्दाज का
रोल अदा करने वाला,
प्राणी मात्र समझते है हम ।।
दिन ढलने पर जब
कहीं निद्रा की आगोश मे
सिमटने का प्रयास करता है ,
तो सर्द रातों की बयार मे,
उसकी आत्मीय प्राताण्डनायें
उसे बहुत बेचैन कर जाती है ।
आंखो के सीमित आसमान से,
जब ओंस झरने लगती है,
तो वह लिहाफ़ के बादल ओढ,
यही सोचता रहता है कि
क्यों ये कमबख्त सर्द रातें,
जख्मों का दर्द इतना बढा देती है ?
पता नही क्यो ??
10 comments:
bahut hi bakhubi se dard ko undela hai.
कहता है जोकर सारा ज़माना
आधा हकीक़त आधा फसाना...
और सर्द रातों का दर्द से अपना ही एक अलग सा रिश्ता होता है शायद..
बहुत खूब लिखा है आपने...
गोदियाल साहब... दिनों दिन आपके अन्दर का कवि निखरता ही जा रहा है..
बात क्या है....??
मौसम बदल रहा है.... या आप बदल रहे हैं ..???
बहुत खूब, लेकिन वह जोकर इतना अहम है उसपर कविता लिखी जा रही है, खेर, अवध कवि सम्मेलन में जाना हो तो सूचित किजिएगा, अब दो ही तमन्ना हैं एक आपसे आपकी कविता सुनने की दूसरे अवध देखने की, आदाब
अवधिया चाचा
जो कभी अवध्ा न गया
सर्कस का जोकर,
पर लिखी यह कविता काफी मर्मस्पर्शी बन पड़ी है।
जोकर का किरदार वाकई अद्भुत है. इसके दर्द को बखूबी पहचाना है आपने
राज कपूर के "जोकर" से प्रभावित और दुःख को बयान करती..
बढ़िया!
कुछ अपने मन की
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
Email- sanjay.kumar940@gmail.com
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
इन्सान वही जो अपना दर्द छुपाकर दूसरो को हँसता रहे।
बहुत अच्छी रचना।
life hi jokar jaisi hai. bas koshish karte hain ki doosro ko khush rakhe chahe office ho ya ghar. hum apni jindigi jite hi kaha hai bhai....
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