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Friday, December 11, 2009

अंधे आगे नाच के, कला अकारथ जाए !

हुआ गुलाम फिर से कुटिल राजनैतिक परिवेश का,
कुछ भी नही हो सकता, अब मेरे इस देश का !

ज्यूं चल रहा, यूं ही चलता रहा और यूं ही चलेगा,
जैचन्द शत्रु संग बैठ सेकेगा रोटी, और यह जलेगा !

शक्लें एक सी है,पता चले कैसे गद्दारों के भेष का,
कुछ भी नही हो सकता, अब मेरे इस देश का !

एक पटेल थे,जी-जान से, बिखरी रियासतें समेटी,
एक ये बांट रहे फिर कहीं बुन्देलखन्ड,कही अमेठी !

घॊडा भाग रहा यहां हर तरफ़, वोट की रेस का,
कुछ भी नही हो सकता, अब मेरे इस देश का !

बिरले मनमोहन ही यहां, सोनी का दिल हरते है,
वरना राज-बाला जैसे कुंए से टर्र-टर्र करते है !

जला न खून’गोदियाल’,निज शरीर अवशेष का,
कुछ भी नही हो सकता, अब तेरे इस देश का !

30 comments:

जी.के. अवधिया said...

"कुछ भी नही हो सकता, अब मेरे इस देश का!"

इतना भी निराश मत होइये गोदियाल साहब, बहुत कुछ होगा और हम ही करेंगे!

मनोज कुमार said...

विचारोत्तेजक!

महफूज़ अली said...

सच कह रहे हैं आप ....कुछ नहीं हो सकता इस देश का...

Mohammed Umar Kairanvi said...

हमें कविता पसंद आई इसलिए चटका न.2 निराश मत होओ, अगर हो भी गये हो तो हम हैं न इस देश के जिसे शिक्षा मिली है जिस देश में रहो उस देश के वफादार रहो

पी.सी.गोदियाल said...

शुक्रिया आदरणीय कैरानवी साहब !

संजय बेंगाणी said...

कैसे कुछ नहीं होगा इस देश का? निराशा जरूर बाधक होगी. वैसे कविता है खूब!

वन्दना said...

aaj subah paper padhte huye isi vishay par soch rahi thi aur aapne usi satya se samna kara diya..........ek baar phir desh ke tukde kar rahe hain........lagta hai phir desh ko gulami ki janjeer pahna kar hi rahenge ye neta kyunki aaj inka imaan sirf itna hai ki apna pet bharein desh bhad mein jata hai to jaye.........bahut dil dukhta hai jab ye haal dekhte hain..........kya yahi 21 vi sadi ka pravesh hai to ant kaisa hoga?

संगीता पुरी said...

कैसे कुछ नहीं हो सकता ?
इतने निराश न हों .. रात्रि के घने अंधकार के बाद ही सवेरा आता है !!

संजय भास्कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

संजय भास्कर said...

कैसे कुछ नहीं होगा इस देश का? निराशा जरूर बाधक होगी. वैसे कविता है खूब!

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सारगर्भित कविता. शुभकामनाएं.

रामराम.

पं.डी.के.शर्मा"वत्स" said...

कुछ भी नही हो सकता, अब मेरे इस देश का!


माना कि अभी वर्तमान हालातों को देखते हुए निराशा उत्पन हो जाना स्वाभाविक है किन्तु "मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास...हम होंगें कामयाब एक दिन......."

अर्शिया said...

आईना दिखा दिया आपने।
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शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।

वाणी गीत said...

होगा क्यों नहीं ...बहुत कुछ होगा इस देश का कई टुकडे होंगे ...जाति,धर्म,भाषा के नाम पर ...!!

Shashidhar said...

जला न खून’गोदियाल’,निज अश्रु ज्योति शेष का,
कुछ भी नही हो सकता, अब तेरे इस देश का !

ab na to ashru hi bache hai na shabd....sab khatm hai bhai...

अवधिया चाचा said...

सुबह डालें मछलियों को दाना, शाम को खाऐं मछली-टीका अब मेरे इस देश में, वाह मेरे देश प्रेमियों एक ढूंडो हजार मिलते हो, हमारी दो इच्‍छाऐं थी एक बुगला भगत देखने की वह इस ब्लाग पे आके पूरी हुई, यह अल्‍पसंख्‍यकों के त्‍यौहार पर कैसा मज़ाक उडाता है यह अब मुहर्रम पर देखना, पिछले देख ही चुके होंगे, अगर यह पोस्‍ट पसंद आरही है तो चटका मारो, 2,3,4 हमने अवध गये बिना ही दिया है, अब यह ब्लागवाणी हाटलिस्‍ट में है, बधाई बधाई बधाई
दूसरी इच्‍छा अवध देखने की है उसकी हमें कोई जल्‍दी नहीं

अवधिया चाचा
जो कभी अवध न गया

ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ said...

सच को आईना दिखा दिया आपने।
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सलीम खान का हृदय परिवर्तन हो चुका है।

अनिल कान्त : said...

एक अच्छी रचना आज के परिवेश पर

डॉ टी एस दराल said...

भाई , हम तो यही कहेंगे की उम्मीद पर दुनिया कायम है।

AlbelaKhatri.com said...

jai ho !

urjaa se bhari

na keval saamyik drishti se balki sthaai star par bhi acchhi kavita

badhaai !!!!!

परमजीत सिँह बाली said...

बहुत बढिया व सामयिक रचना है।बधाई।

अजय कुमार said...

आज के हालात पर उपजी रचना है ।
एक बात अवधिया चाचा से कहुंगा -आप अवध जरूर जायें क्योंकि अवध तहजीब सिखाने वाला शहर है

दिगम्बर नासवा said...

जला न खून’गोदियाल’,निज शरीर अवशेष का,
कुछ भी नही हो सकता, अब तेरे इस देश का ..

ये दर्द बहुत से लोगों के दिल में उठता होगा ........ दिल की आवाज़ है आपकी ये रचना ......

Puneet said...

haha...

aisa nahi sir...abhi to bohot kuch hona baki hai.....

abhi galat ho raha hai to kya hua?? sahi bhi hoga....

bas kuch achche leader chahiye :)

निर्मला कपिला said...

सच मे कुछ नहीं हो सकता मेरे देश क। बहुत् अच्छी रचना है बधाई

अम्बरीश अम्बुज said...

एक पटेल थे,जी-जान से, बिखरी रियासतें समेटी,
एक ये बांट रहे फिर कहीं बुन्देलखन्ड,कही अमेठी !
kya baat hai... shandaar.. ab TOI ki website par jakar aaj ki latest news dekhiye.. poorvaanchal bhi chahiye!!! ye politicians bhi naa...

जला न खून’गोदियाल’,निज शरीर अवशेष का,
कुछ भी नही हो सकता, अब तेरे इस देश का !
is par sahmat hone se pahle sochna padega.. i mean, lagta to sach hi hai, par manne ko jee nahi kart...

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

घॊडा भाग रहा यहां हर तरफ़, वोट की रेस का,
कुछ भी नही हो सकता, अब मेरे इस देश का !

ये तो आपने बिलकुल सत्य कहा है ...

Shashidhar said...

Hum to yahi aasha karte hai ki bhavishya main bhagwan kuchh inko bhi sadbuddhi de bhai......

RAJ SINH said...

रात के राही थक मत जाना
सुबह की मंजिल दूर नहीं .
...............................
रात जितनी ही संगीन होगी
सुबह उतनी ही रंगीन होगी
गम न कर जो है बादल घनेरा .

विश्वास करें ,बदलेगा ही नहीं सब बदल जायेगा ,अगर आपके जैसे सिर्फ कुछ ही उठ खड़े हों .
लेकिन देश का दर्द आपकी कविता में उतर आया है .
बधाई !

DR. ANWER JAMAL said...

हुआ गुलाम फिर से कुटिल राजनैतिक परिवेश का,
कुछ भी नही हो सकता, अब मेरे इस देश का !

ज्यूं चल रहा, यूं ही चलता रहा और यूं ही चलेगा,
जैचन्द शत्रु संग बैठ सेकेगा रोटी, और यह जलेगा !

sir,
You r a good poet indeed but please do not give negative message to the society.
There is a war between lightbeares and darkholder from the beginning. recognise urself where u r and what r u doing for humanity and for country?
It is ur duty.
It is a frndly advice pls do not take it personal.
please lit a candle of hope in ur next poem.