गया साल प्यासा तरसकर ही काटा,
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए !
कभी बरसात होगी इसी आश में हम,
छाता उठाके यहाँ भी लचकते चले आए !!
साल गुजरा जो ऐसा मनहूस निकला,
महंगाई ने जमकर हमारे छक्के छुडाए !
जब मंदी बेचारी किसी मंडी से गुजरी,
सब्जी के भावो ने हाथो के तोते उडाए !!
कमबख्त अरहर भी इतनी महंगी हुई है,
कड़ी-चावल में ही दिन-रैन हम रहे रमाए !
यों तो दिवाली पे हरसाल बोनस मिले है,
गतसाल लाला ने तनख्वाह से पैसे घटाए !!
आसार यों अब भी लगते अच्छे नहीं है,
कोरे सरकारी वादों से रहे तिलमिलाए!
साल गुजरा वो तो जैसे-तैसे ही गुजारा,
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए !!
19 comments:
बाकी कुछ बचा तो मँहगाई मार गई .....
लगता है कि नया साल और भी मँहगाई लायेगी।
न जाने नया साल क्या गुल खिलाये ?
इस सोच में काहे जा रहे हैं दुबराय
अब तो जो होना है बस हो ही जाय
कह दीजिये टिपियाय कि ना टिपियाय ??
गोदियाल जी क्या लिखते है आप !!
अंग्रेजी हो कि हिंदी जवाब नहीं आपका...
बहुत बढियां...
एक ग़ज़ल की पंक्तियाँ याद आ रही हैं ---
हम तो समझे थे , बरसात में बरसेगी शराब
आई बरसात तो, बरसात ने दिल तोड़ दिया ।
महंगाई ने साल को कुछ ऐसा ही बना दिया।
waah !
bahut khoob !
नए साल का तो हमें भी इंतजार है ..
बढिया रहा गोदियाल जी ये भी
वाह जनाब ...... आपके हास्य और व्यंग का जवाब नही .......
कुछ ज़्यादा उम्मीद नये साल से भी मत रखिए क्योंकि देख कर तो नही लगता की कोई धमाका होने वाला है हाँ अगर कोई अनहोनी मेरे बातों को ग़लत कर दे तो मुझे और भी खुशी होगी...बढ़िया रचना वैसे उम्मीद रखनी चाहिए क्या पता कुछ अच्छा हो जाय....धन्यवाद गोदियल जी रचना तो निश्चित रूप से बढ़िया है..
har din ek nai ummeed leke aata hai.kya karu vo bhi isi ummeed me chala jata hai.badhiya
बहुत ही अच्छा लिखा है ।
आसार तो ऐसे ही हैं की ... नए साल मैं भी महंगाई अपना रंग दिखायेगी | अब अगले संसदीय चुनाव से पहले तक महंगाई अपना रंग दिखाती रहेगी |
उम्मीद ही एकमात्र सहारा है गोंदियाल जी निराश न हों....।
तो आपने मुशायरे की शुरिआत कर ही दी बधाई बहुत बडिया
godiyaal ji rachnaa bahut sundar hai !!! आपकी कमेन्ट से हंसी ऐसी निकली की आप को बताने चला आया !!!! दोपहर में कुछ सच्ची बातें होती है शाम को ठट्टा होता है !!! हा..हा..
मंहगाई की अच्छी खबर ली आपने
बहुत बढ़िया और बिल्कुल सही बात का ज़िक्र किया है आपने! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई !
saal to bas aayenge aur jaayenge.. ya politicians kaise badal jayenge!!!
sundar kavita...
मजेदार है,झकास है। तरही मुशायरा तो चलने दीजिये। जब तक उसकी रपट आती है तब तक इसी मिसरे पर अपने आस-पास की और तमाम चीजें रगड़ डालिये। जो होगा देखा जायेगा।
अब तो नया साल आने पर ही पता चलेगा शायद जो हमारे खाद्यान्न है इतने महंगे ना हो की सिर्फ खाना खाने के लिए ही कमाई करनी पड़े !!!
mehngaayi ko apna mehman banana hoga
phir ek din use bhi to jana hoga
saal aate rahege saal jaate rahenge
hamein hi ab umeed ka naya gul khilana hoga
iske siwa kaha kya ja sakta hai.........jisse bacha nhi ja sakta kyun na uska swagat kiya jaye.
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