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Saturday, December 5, 2009

मैं ख्वाब ही बुनती रही

ताऊ की पहेली का समय हो रहा है, ज्यादा नहीं लिख पाया, इसलिए एक आठ लाइनों की नज्म पेश है;
कब न जाने वो दिल का हर इक, तार आकर छेड़ गए,
मैं जिन्दगी के साज-सरगम, यूँ आँचल में ही चुनती रही !
तबले के ताल, सरोद-ए-दिल-नशीं, व बीणा की तान पर,
जाने कब वो राग मल्हार गा गए, मैं ख्वाब ही बुनती रही !!

इस कदर मन को मोहित किया था, राग के हर बोल ने,
साज बजता रहा, वो बेखर गाते रहे, और मैं सुनती रही !
दिल के खंडहर की टूटी मेहराबें एवं धूल-धूसरित मीनारें ,
ताने-बानो के इर्द-गिर्द रूह को रूई की मानिंद धुनती रही !!

14 comments:

ललित शर्मा said...

shandar godiyal ji-ye aath line hi damdar hai-ab ham bhi aate hain apke pichchhe piche. badhai

अजय कुमार झा said...

बहुत खूब गोदियाल जी ..
बहुत ही सुंदर पंक्तियां ...मजा आ गया जी ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...

दिल के खंडहर की टूटी मेहराबें एवं धूल-धूसरित मीनारें ,
ताने-बानो के इर्द-गिर्द रूह को रूई की मानिंद धुनती रही !!

बहुत ही बढ़िया लिखा है!
सबरस मे सराबोर हो गये जी!

मनोज कुमार said...

साज बजता रहा, वो बेखर गाते रहे, और मैं सुनती रही !
बहुत ही बढ़िया मजा आ गया !

M VERMA said...

कब न जाने वो दिल का हर इक, तार आकर छेड़ गए,
मैं जिन्दगी के साज-सरगम, यूँ आँचल में ही चुनती रही !
बहुत सुन्दर भाव

अजय कुमार said...

संगीत के रास्ते प्यार का रास्ता तय हो रहा है

वन्दना said...

दिल के खंडहर की टूटी मेहराबें एवं धूल-धूसरित मीनारें ,
ताने-बानो के इर्द-गिर्द रूह को रूई की मानिंद धुनती रही !!

wow! is baar to 8 lines ne hi kamaal kar diya........kya kya na kah diya.........bahut hi sundar bhavon se saji rachna.......badhayi

Udan Tashtari said...

शानदार छ्न्दबद्ध गीत..आनन्द आ गया!!

खुशदीप सहगल said...

चश्मेबद्दूर गोदियाल जी,

फोटो बेशक आपकी दस साल पुरानी है लेकिन दिल सदाबहार जवां है और रहेगा...

जय हिंद...

विनोद कुमार पांडेय said...

यह तो प्रेम में डूबी मीरा बाई जैसी अभिव्यक्ति है....कम लाइन और बढ़िया भाव...बधाई

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर क्या बात है, बार बार पढने को दिल करता है. धन्यवाद

वाणी गीत said...

दिल के खंडहर की टूटी मेहराबें एवं धूल-धूसरित मीनारें ,
ताने-बानो के इर्द-गिर्द रूह को रूई की मानिंद धुनती रही ...

ताने बाने बनते रहे कविताओं में ...
बहुत खूब ...!!

डॉ टी एस दराल said...

तबले के ताल, सरोद-ए-दिल-नशीं, व बीणा की तान पर,
जाने कब वो राग मल्हार गा गए, मैं ख्वाब ही बुनती रही !!

waah !

दिगम्बर नासवा said...

कब न जाने वो दिल का हर इक, तार आकर छेड़ गए,
मैं जिन्दगी के साज-सरगम, यूँ आँचल में ही चुनती रही ...

प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति ............ प्रेम में डूबना और जागना किस्मत वालों को ही मिलता है ..........