यहाँ लुच्चे-लफंगों की भरमार क्यों है,
मेरे इस देश में इतने गद्दार क्यों है !
जिसे देखो वो ढूढता है दवा मर्ज की ,
कोई ये न पूछे इतने बीमार क्यों है !
पृथ्वीराज आते यहाँ कंजूसी बरतकर,
मगर ये जैचंद आते हर बार क्यों है !
मगरमच्छ तो हाथी का मल खा गए,
होती परिंदे की बीट पर तकरार क्यों है !
तलवे चाटना परदेशी के पेशा जिनका,
वो ही बताते अपने को खुद्दार क्यों है !
आशाओं-उम्मीदों पे जो खरी न उतरे,
ताजो-तख़्त पे बैठी वो सरकार क्यों है !
Sunday, April 25, 2010
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22 comments:
पृथ्वीराज आते मितव्ययता बरतकर,
मगर ये जैचंद आते हर बार क्यों है !बहुत शानदार. जयचंदों की तो भरमार है.
bahut shandar likha ..jhakjhor ke rakh dene wali kavita....
bahut khoob............achcha likha hai aaj ke jaichandon par.
"मगरमच्छ तो हाथी का मल खा गए,
परिंदे की बीट पर होती तकरार क्यों है!"
बहुत खूब!
हर शाख पे गद्दार बेठा है
अंजामे हिंदोस्तां क्या होगा
बहुत शानदार....
तेरे इस देश में इतने गद्दार क्यों है !
और फिर जयचन्दों को आना कहाँ होता है
यहाँ तो उन्हीं की सरकार है
कुनैन की गोलियाँ ठूँस रहे हैँ आप, गोदियाल साहब। आशा है दुनियाँ की बीमारियाँ कुछ तो ठीक हो...
बहुत खूब!!बहुत बढिया रचना है.....बधाई।
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
आशाओं - उम्मीदों पे जो खरी न उतरे,
ताजो-तख़्त पे बैठी वो सरकार क्यों है !
अरे यह बेशर्मो की सरकार है जी, जो शरम कब की बेच कर खा गये, लेकिन आज भी अपने को नकली दुध का धुला कहते है.... लेकिन जनता क्यो फ़िर से इन को ही जीताती है????
बहुत लाजवाब, शुभकामनाएं.
रामराम.
तल्खी का जबरदस्त इज़हार ! खुदा खैर करे !
गोंदियल जी मैं हमेशा कविताओं और शेरो शायरी के बाउंसरों को डक कर देता हूँ पर आपकी ये वाली कविता तो मेरे भेजे में भी बड़ी आसानी से धंस गयी । असल में ये बहुत पैनी लगी मझे तो । मजा आया इसलिए मेरी उपस्थिति दर्ज करें। जय हिंद।
ek baar fir behtarin rachan sahab
आपको रचना पसंद आई इसके लिए आपका तहेदिल से आभारी हूँ, 'विचार शून्य' जी , जानकार अच्छा लगा, बस यों समझिये की मन की भड़ास इसी तरह निकाल लेता हूँ ! आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है !
तलवे चाटना प्रदेशियों के पेशा है जिनका,
बताते वो अपने को खुद्दार क्यों है !
आशाओं - उम्मीदों पे जो खरी न उतरे,
ताजो-तख़्त पे बैठी वो सरकार क्यों है !
...और क्या...! बहुत सही कहा आपने. रचना बेहतरीन है. यह तेवर कायम रहे.
गौदियाल जी ... बस इतना ही कहूँगा ...
लिखने वाले तो बहुत हैं दुनिया में पर
आपकी कलम की तेज इतनी धार क्यों है
आशाओं - उम्मीदों पे जो खरी न उतरे,
ताजो-तख़्त पे बैठी वो सरकार क्यों है !
कविता का हर बन्द लाजवाब है!
आज आदमी कि सोच इतनी बीमार क्यों है?
बदलना है तो आज क्यों नहीं,
ये खामख्वाह ही कल का इंतज़ार क्यों है?
चुकती कर दी सबकी देनदारी फिर भी,
अपने प्रति बाकी ये उधार क्यों है?
कुंवर जी,
Lataadti, dutkaarti aur itihaas yaad dilati is oz bhari rachna ke rachnakar ko salaam.
बहुत सही प्रश्न है .. पर प्रश्नों का उत्तर देना कठिन है !!
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