धर्म का पुण्य समझा था तुझे, तू अधर्म का पाप निकला,
मानवता का कलंक निकला, पर्यावरण का अभिशाप निकला !
हांकता है बाहुबल के जोर पर, तू यहाँ हर इक झुण्ड को,
भेड़ियों से है भय तुझे, भेड़ पर जुल्म का ताप निकला !
महापंच की चौधराहट दिखाई, निरीह प्रेमियों की राह में,
मुस्लिमों का तालिबां निकला, हिन्दुओ का खाप निकला !
सरिता, सुदूर पर्वतों से निकल,जाती है सागर से मिलन को,
उसकी भी राह रोक डाली, तू तो खाप का भी बाप निकला !
धन-ऐश्वर्य की लालसा ने, इस कदर अँधा बना के रख दिया,
भूखों के मुह का लिवाला छीनकर, गरीबी का संताप निकला !
वो अब तक खुला घूमता है, पशुओ का चारा खा गया जो,
निर्दोष मर-खप गया कारागाह में, यह तेरा इन्साफ निकला !!
Thursday, March 11, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment