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Wednesday, January 20, 2010

पसंद अपनी-अपनी !

दास्ताँ-ए-इश्क जब उन्होंने सुनाया,
अंदाज-ए-बयाँ हमें उनका खूब भाया ,
बनावटी मुस्कान चेहरे पे ओढ़कर ,
दर्द, दिल में छुपाना भी पसंद आया !

अश्क टपके बूँद-बूंद जो नयनों से ,
वो दिल-दरिया से निकल के आये थे,
हमें गफलत में रखने को उनका वो,
प्याज छिलते जाना भी पसंद आया !

हमें आशियाने पर अपने बिठा कर,
किचन में तली पकोड़ी जब उन्होंने ,
सिलबट्टे पे पोदीना-चटनी को पीसते,
मधुर गीत गुनगुनाना भी पसंद आया !

प्यार से परोसी जब उन्होंने हमको,
गरमागरम चाय संग चटनी-पकोड़ी,
थाली के ऊपर से मक्खी भगाने को,
उनका वो पल्लू हिलाना भी पसंद आया !

16 comments:

ललित शर्मा said...

हमें आशियाने पर अपने बिठा कर,
किचन में तली पकोड़ी जब उन्होंने ,
सिलबट्टे पे पोदीना-चटनी को पीसते,
मधुर गीत गुनगुनाना भी पसंद आया !

प्यार से परोसी जब उन्होंने हमको,
गरमागरम चाय संग चटनी-पकोड़ी,
थाली के ऊपर से मक्खी भगाने को,
उनका वो पल्लू हिलाना भी पसंद आया


आज तो गुरु कहर ढा दिया
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं

जी.के. अवधिया said...

"बनावटी मुस्कान चेहरे पे ओढ़कर ,
दर्द, दिल में छुपाना भी पसंद आया !"

वाह!

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो ..

श्यामल सुमन said...

बनावटी मुस्कान चेहरे पे ओढ़कर ,
दर्द, दिल में छुपाना भी पसंद आया !

बहुत खूब गोदियाल साहब। वाह।

हाथ मिलते रहे बेरूखी आँख में
वो मशीनों सा बस मुस्कुराते रहे

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

दिगम्बर नासवा said...

प्यार से परोसी जब उन्होंने हमको,
गरमागरम चाय संग चटनी-पकोड़ी,
थाली के ऊपर से मक्खी भगाने को,
उनका वो पल्लू हिलाना भी पसंद आया

क्या दृश्य खैंचा है ........ मक्खियाँ उड़ाने का क्या अंदाज़ है ...... आपका ये अंदाज़ भी बहुत भाया ..........

महफूज़ अली said...

वाह! आज कि यह कविता तो बहुत ही अच्छी लगी.....

डॉ टी एस दराल said...

वाह गोदियाल जी। प्यारी भी, रोमांटिक भी और गुदगुदाती भी। बढ़िया रचना।

मनोज कुमार said...

आपको वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की शुभकामनाये !

राज भाटिय़ा said...

प्यार से परोसी जब उन्होंने हमको,
गरमागरम चाय संग चटनी-पकोड़ी,
थाली के ऊपर से मक्खी भगाने को,
उनका वो पल्लू हिलाना भी पसंद आया !
बहुत बहुत खुब सुरत, मकखियां भी ना जाने क्यो ऎन वक्त पर ही आ मरती है,
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं

पं.डी.के.शर्मा"वत्स" said...

वाह्! आनन्द आ गया । बेहद कमाल की कविता.....
मदनोत्सव की शुभकामनाऎँ!!!

Udan Tashtari said...

थाली के ऊपर से मक्खी भगाने को,
उनका वो पल्लू हिलाना भी पसंद आया

हा हा!! ये तो है ही पसंद आने वाली बात!!

बहुत खूब!

Babli said...

आपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने!

'अदा' said...

प्यार से परोसी जब उन्होंने हमको,
गरमागरम चाय संग चटनी-पकोड़ी,
थाली के ऊपर से मक्खी भगाने को,
उनका वो पल्लू हिलाना भी पसंद आया !

accha !! to aap ye sab bhi gaur farmaatey hain..??
pasand aayaa...:):)

Shashidhar said...

Hasya bhi, kavita bhi, Adbhud Rachna hai....

ताऊ रामपुरिया said...

थाली के ऊपर से मक्खी भगाने को,
उनका वो पल्लू हिलाना भी पसंद आया


वाह लाजवाब कहा गोदियाल जी. आनंद आया.

रामराम.

वन्दना said...

ye hote hain kavi ka bhav jo na jane kahan kahan se nikal aate hain .......pallu se bhi makkhi udana , ye bhav to ek kavi hi khoj sakta hai ...........badhayi.

dipayan said...

वाह ! बहुत खूब ज़नाब ! सोचने से ही, होठों पर मुस्कान चली आती है.