लुंठक-बटमारों के हाथ में, आज सारा देश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है !
सरगना साधू बना है, प्रकट धवल देह-भेष है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!
भ्रष्ट-कुटिल कृत्य से, न्यायपालिका मैली हुई,
हर गाँव-देश, दरिद्रता व भुखमरी फैली हुई !
अविद्या व अस्मिता, अभिनिवेश, राग, द्वेष है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!
राज और समाज-व्यवस्था दासता से ग्रस्त है,
जन-सेवक जागीरदार बना,आम-जन त्रस्त है !
प्रत्यक्ष न सही परोक्ष ही,फिरंगी औपनिवेश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!
शिक्षित समझता श्रेष्ठतर है,विलायती बोलकर,
बहु-राष्ट्रीय कम्पनियां नीर भी, बेचती तोलकर,
देश-संस्कृति दूषित कर रहा,पश्चमी परिवेश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!
Tuesday, January 25, 2011
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9 comments:
जबरदस्त!!
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
Sarthak rachna k liye badhai sweekar karein
http://amrendra-shukla.blogspot.com
देश-संस्कृति दूषित कर रहा,पश्चमी परिवेश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!
सार्थक सन्देश देती रचना के लिये बधाई।
'gantantr beshak ban gaya swtantr hona shesh hai'
desh ki asal tasveer prastut karne me samarth hai aapki rachna.
सुन्दर रचना..सार्थक सन्देश देती.. बधाई
बेहतरीन..!!!
बहुत सुन्दर ! कविता में समाज का चित्रण बखूबी किया है ! रचना में दबा हुआ क्रोध है व विरोध का स्वर स्वत; ही आ गया है !
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!
बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन के साथ विचारणीय प्रश्न भी ..
सार्थक रचना के लिये बधाई।
Brb...Jay Bharat
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