ऐ मेरे वहशत-ए-दिल, मुझको बता, तू इतना नादाँ क्यों है,
एहसास-ए-जिगर गैरों को बताके ,फिर होता परेशाँ क्यों है।
छुपा न अब, जमाने पर यकीं करके तूने फरेब खाया है,
गर जख्म खाए नहीं, तो चहरे पे उभरते ये निशाँ क्यों है।
अपने ठहरे हुए मुकद्दर में, तू भी सुख का तिलिस्म ढूंढ,
जिन्दगी की रुसवाइयों से डरकर, हो रहा तू हैराँ क्यों है।
यूँ तो हर बिखरे ख्वाब को भी, शिकस्त का गम होता है,
पर सीने के सुलगते दोज़ख में, शीतल तेरे अरमाँ क्यों है।
जाम-ए-अश्क छलकने दे, जज्बातों का दम घुटने पर,
फिर कोई ये न कहे तुझसे, ऐसा अंदाज-ए-बयाँ क्यों है।
यादों के दरीचे खोले रख 'परचेत', धडकनों के आहाते में,
वजह रहे न कुछ कहने को, फासला इताँ दर्मियाँ क्यों है।
Friday, January 21, 2011
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1 comment:
क्या बात है गोदियाल जी, सभी शेर दिल को छू जाने वाले।
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ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?
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