न आज देश बना, चोरो का निवाला होता,
न तख़्त-ए-ताज लुच्चों ने संभाला होता।
सुण ओए वोट-बैंक ,ऐसा दिन न आता,
वोट तुमने सोच-समझकर डाला होता॥
उपकार अपेक्षा व्यर्थ है भिखमंगो से,
दरवार को पाट दिया भूखे-नंगो से।
आज न भ्रष्टाचार का बोलबाला होता,
वोट तुमने सोच-समझकर डाला होता॥
ओंछे माई-बाप के चरण चूम रहे है,
हिस्ट्रीशीटर जन-प्रतिनिधि बने घूम रहे है।
पंक में धंसा न नीचे से ऊपरवाला होता,
वोट तुमने सोच-समझकर डाला होता॥
Friday, January 21, 2011
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