गर फैसले हमने गैरों पे टाले न होते,
तो आज देश में इतने घोटाले न होते।
सांप-छुछंदर आस्तीन में पाले न होते,
तो आज देश में इतने घोटाले न होते॥
मक्कार खुद छुपे रहकर परदे के पीछे,
कठपुतलिया नचाये, डोरी से खींचे।
सिंहासन, कैकई-धृतराष्ट्र संभाले न होते,
तो आज देश में इतने घोटाले न होते ॥
हर कोई रमा बैठा है सिर्फ अपने में,
संत-महात्मा लगे है स्वार्थ जपने में।
गर जनता के मुह पड़े ताले न होते,
तो आज देश में इतने घोटाले न होते॥
समाज यहाँ इस कदर बँटा न होता,
देश अपना जयचंदों से पटा न होता।
गर नेता-शाहों के दिल काले न होते,
तो आज देश में इतने घोटाले न होते ॥
राजनीति के ये खेल अजब निराले है,
कोयले की दलाली में हाथ काले है।
गर गोता लगाने को गंदे नाले न होते,
तो आज देश में इतने घोटाले न होते ॥
Thursday, January 20, 2011
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