घनघोर अन्धेरा छाया देखो,
कैसा कलयुग आया देखो !
भद्र अस्तित्व को जूझ रहा,
शठ-परचम लहराया देखो !!
गोवा, बांदा, पूर्णिया देखो,
विधि-तंत्र चरमराया देखो !
डाकू बना विधायक घूमे,
लोकतंत्र शरमाया देखो !!
कुकर्मी निर्भय घूम रहे है,
दण्डित अबला काया देखो !
सृष्टि भूख से अति त्रस्त है,
केक काटती माया देखो !!
गगन खो रहा रंग अपना,
भू पर नील गहराया देखो !
जीवित तो उपचार रहित है,
मूर्ति पर धन बरसाया देखो !!
इंतियाज़ चरम को चूम रहा,
ऐसा राम-राज्य पाया देखो !
घनघोर अन्धेरा छाया देखो,
कैसा कलयुग आया देखो !!
Friday, January 21, 2011
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