लड़कपन बिगड़ गया, माँ-बाप के लाड में,
यौवन में संग अंतरंग हम चढ़ गए झाड में।
कुछ ने तो पा लिया बुलंदियों को प्यार की,
कुछ रह गए जो हतभाग्य, वो गए खाड में।
अब दिखाते किसे हो ये भय बदनामियों का,
हम तो सदा यूँ ही प्यार करते रहेंगे आड़ में।
जी-भर के करेंगे मुहब्बत अपने हमनशीं से,
दर्द होवे चाहे जितना जगवालों की दाड में।
जमाना दे हमें जितना,अधर्मियों का ख़िताब,
हम तो हमेशा यों ही लगे रहेंगे जुगाड़ में।
देख हमको भला अब कोई नाक-भौं सिकोडे,
हमारी बला से,दुनिया जाये तो जाये भाड मे॥
Thursday, January 20, 2011
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