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Friday, September 10, 2010

शिक्षक दिवस के उपलक्ष में !

गुरु गुरु ना रहा,
शिष्य शिष्य ना रहा,
वैदिक परम्पराओ का
अब कोई भविष्य ना रहा !
निज-सुखों को त्यागकर,
देने को मुझको ज्ञान तुम
करते रहे कोशिश तमाम,
वो मेरे गुरुजी तुम ही थे,
तुम्ही तो थे !
जो ज़िंदगी की राह मे
बने थे मेरे मार्गदर्शक,
वो मेरे गुरूजी तुम ही थे,
तुम्हीं तो थे!!
इस कलयुगी समाज में,
गुरुकुल परम्परा व
गुरु-शिष्य के सर्मपण भाव का
अब वो परिदृश्य ना रहा,!
सफ़र के वक़्त में झुका था,
जब चरण छूने आपके,
गले लगाया था आपने
पलक पे मोतियों को तोलकर
वो गुरुदेव तुम न थे तो कौन था
तुम्हीं तो थे,
ऋषिकुल में कोचिंग केंद्र खुल गए
द्रोर्ण काटता जेब
एकलव्य के बाप की,
एकलव्य की भी नजर टिकी
सम्पति पर है आपकी,
अफजल गुरु बन गए
कसाब मनुष्य ना रहा !
वैदिक परम्पराओ का
अब कोई भविष्य ना रहा !!


शिक्षक दिवस के उपलक्ष में इस पूर्व संध्या पर मेरा अपने समस्त आदरणीय गुरुदेवों को दंडवत प्रणाम ! हे गुरुदेवो ! ये आपका आशीर्वाद ही था जो आज मैं इस लायक बना हूँ कि उन्मुक्त होकर यहाँ एक आधुनिक और पौराणिक गुरु का तुलनात्मक अध्ययन कर रहा हूँ ! आप सदैव मेरे पूज्य रहोगे !!!

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