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Friday, September 10, 2010

कुचले कुछ ऐसे अरमां भी जरूरी है !

सितम सहने को तो जुबां भी जरूरी है,
दिल में धडकनों के निशां भी जरूरी है।
जख्मों को छेड़े जो पड़े-पड़े दामन में,
कुचले कुछ ऐसे अरमां भी जरूरी है॥
ख्वाइशे जो टूटी दिल की आँधियों में,
आँखों से बहा ले वो तूफां भी जरूरी है।
कभी गुने जो हमें नाम लेकर हमारा,
ऐसा इक किसी पे अहसां भी जरूरी है।
ज़रा ढकने को जमीं की लाजो-शर्म को ,
सिरों के ऊपर आसमां भी जरूरी है।
पश्चिमी हवाए अगर हदे लांघने लगे,
रुख बदलने को तालिबां भी जरूरी है॥
आसमां तले बहुत मुश्किल है बसर,
वादियों में रहने को मकां भी जरूरी है।
चाहो जिधर भी शहर बस तो जायेंगे,
संग रहने को अच्छे इंसां भी जरूरी है॥

2 comments:

निर्मला कपिला said...

कभी गुने जो हमें हमारा नाम लेकर,
ऐसा इक किसी पे अहसां भी जरूरी है।

ज़रा ढकने को जमीं की लाजो-शर्म को ,
सिरों के ऊपर आसमां भी जरूरी है।
वाह वाह बहुत ही कमाल है। बधाई

देवेन्द्र पाण्डेय said...

चाहो जिधर भी शहर बस तो जायेंगे,
संग रहने को अच्छे इंसां भी जरूरी है॥
...इस पृष्ठ की सभी पढ़ लीं। सभी के भाव बेहद उम्दा हैं।