महलों में झूठ के वर्क से कुछ और सजावट आ गई है,
लवों पर कुछ और कुटिल शब्दों की बनावट आ गई है!
सरकार की महंगाई का ग्राफ भी अब नीचे आ गया,
क्योंकि मानवीय मूल्यों में कुछ और गिरावट आ गई है !!
बच्चो ने भूख से समझौता कर बिलखना छोड़ दिया,
मजबूरी व हालात के टूटे तटबंधों में भरावट आ गई है !
गरीब के आंसुओं ने अब आग उगलना छोड़ दिया,
क्योंकि आँखों की नमी में लहू की तरावट आ गई है !!
अब प्यार-प्रेम के अभिनय सभी दिखावटी बन गए,
क्योंकि सेवाभाव और सादगी में भी दिखावट आ गई है!
अस्पतालों से निकल मरीज भी अब मिलावटी हो गए,
क्योंकि बोतलों से चढ़े खून में भी मिलावट आ गई है!!
Wednesday, April 28, 2010
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10 comments:
बहुत खूब!!
बहुत सुंदर पंक्तियां हैं।
क्योंकि मानवीय मूल्यों में कुछ और गिरावट आ गई !!
क्योंकि सेवाभाव और सादगी में भी दिखावट आ गई !
क्योंकि बोतलों से चढ़े खून में भी मिलावट आ गई !!
अमानवीय रूप से कठोर सच्चाई।
... बेहद प्रभावशाली
कही सरकार को अपना सिहांसन डोलता नजर तो नही आ रहा???
Lajwaab hai Godiyal sahab aaj ki kavita..
bahut bahut dhanywaad aapka..
मिलावट का जमाना है ,जहर पीकर बचिये और दवा खाकर चलते बनिये
बहुत खूब, लाजबाब !
अब प्यार-प्रेम के अभिनय सभी दिखावटी बन गए,
क्योंकि सेवाभाव और सादगी में भी दिखावट आ गई !
अस्पतालों से निकल मरीज भी मिलावटी हो गए,
क्योंकि बोतलों से चढ़े खून में भी मिलावट आ गई !
bahut khoob godial sahab
aise hi likhte rahiye
बिल्कुल सटीक सटका दिया आपने. शुभकामनाएं.
रामराम.
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