मन-पांखी हो रहा अशक्त क्यों है,
ऐ वक्त ! तू इतना कमवख्त क्यों है !
खुद कहे, हर दम मेरे साथ चल,
राहे-सफ़र करता फिर विभक्त क्यों है !
डगमगाने लगी कश्ती मझधार में ,
लहरों का साहिल पे भरोसा सख्त क्यों है !
फरेब की जमीं पर झूठ की पौधे देख,
फुसफुसाता ये चिनार का दरख़्त क्यों है !
शहंशाहों का घमंड में चूर होकर,
ताज उछलते देखा,उछलता तख़्त क्यों है !
Tuesday, April 20, 2010
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19 comments:
डगमगाने लगी दिलों की मझधार में कश्तियाँ सभी,
लहरों का साहिल पे मगर, इतना भरोसा सख्त क्यों है !
गौदियाल साहब ... आज बहुत ही संजीदा रचना लिखी है ... गहरी बात करती ... लाजवाब ...
"खुद ही कहता है कि हरपल - हरकदम मेरे साथ चल,
मंजिलों की डगर में फिर, सफ़र करता विभक्त क्यों है !
बाद्शाहियत का राज और दौलत के नशे में चूर होकर,
ताज उछलते तो देखा था,मगर उछलता तख़्त क्यों है !"
जी बहुत बढ़िया!मै हमेशा सोचता हूँ कि कुछ ऐसा भी लिखूं,नहीं लिख पता!
कुंवर जी,
खुद ही कहता है कि हरपल - हरकदम मेरे साथ चल,
मंजिलों की डगर में फिर, सफ़र करता विभक्त क्यों है !
सफर में राह बताने वाले होंगे
सुन्दर रचना
ताज उछलते है और तख्त पलटते हैं। बढिया लिखा है आपने।
ताज उछलते तो देखा था,मगर उछलता तख़्त क्यों है !
क्या बात है सर जी...मजा आया...
डगमगाने लगी दिलों की मझधार में कश्तियाँ सभी,
लहरों का साहिल पे मगर, इतना भरोसा सख्त क्यों है
बहुत बढ़िया। उत्तम अभिव्यक्ति!
bahut hi jabardast...hindi aur urdu ka achcha samavesh...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
बाद्शाहियत का राज और दौलत के नशे में चूर होकर,
ताज उछलते तो देखा था,मगर उछलता तख़्त क्यों है ! बहुत सुंदर कविता
धन्यवाद
वाह .. बहुत बढिया !!
आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है. आशा है हमारे चर्चा स्तम्भ से आपका हौसला बढेगा.
kin lafzon mein tarif karoon..........lajawaab.
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
लहरों पर भरोसा इतना सख्त क्यों हैं ...
क्यूँ ना हो ...
किनारों पर जो कश्तियाँ डूब जाया करती हैं ...
वो भी क्या कभी मझधार से डरा करती हैं ...
फरेब की जमीं पर उगते-पनपते झूठ के पौधे देखकर,
फुसफुसाता दिन-रात बूढा, ये चिनार का दरख़्त क्यों है..
ये पंक्तियाँ भी अच्छी लगी ...
aise hi apne anubhav likhte rahna jindgi ki kitab me
har sabd ka sahi istemaal
nice sir
har bar ki tarah bahut hi badhiya
पुरी ग़ज़ल में सजीदगी से गहरी बात लिख दी है...ये शेर मन को छू गए..
खुद ही कहता है कि हरपल - हरकदम मेरे साथ चल,
मंजिलों की डगर में फिर, सफ़र करता विभक्त क्यों है !
डगमगाने लगी दिलों की मझधार में कश्तियाँ सभी,
लहरों का साहिल पे मगर, इतना भरोसा सख्त क्यों है !
बहुत खूब
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