सड़क वीरां क्यों लगती है, उखड़े-उखड़े से खूंटे है,
आसमां को तकते नजर पूछे, ये बादल क्यों रूठे है!
डरी सी शक्ल बताती है, महीन कांच के टुकडो की
क्रोध में सुरीले कंठ से, कुछ कड़े अल्फाज फूटे है!
रसोई के सब बिखरे बर्तन, आहते में पडा चाक-बेलन,
उन्हें देखकर कौन कहेगा कि ये बेजुबाँ सब झूठे है !
अजीजो को फोन कर दे दी, मेरे मरने की खबर झूठी,
आपके तो बेरुखी-तकरार के, अंदाज ही अनूठे है!
उस 'अंधड़' को खुद तुमने, झिंझोड़ कर जगाया था,
मलाल यह है कि ख़्वाबों के सुनहरे तिलिस्म टूटे है !!
आसमां को तकते नजर पूछे, ये बादल क्यों रूठे है!
डरी सी शक्ल बताती है, महीन कांच के टुकडो की
क्रोध में सुरीले कंठ से, कुछ कड़े अल्फाज फूटे है!
रसोई के सब बिखरे बर्तन, आहते में पडा चाक-बेलन,
उन्हें देखकर कौन कहेगा कि ये बेजुबाँ सब झूठे है !
अजीजो को फोन कर दे दी, मेरे मरने की खबर झूठी,
आपके तो बेरुखी-तकरार के, अंदाज ही अनूठे है!
उस 'अंधड़' को खुद तुमने, झिंझोड़ कर जगाया था,
मलाल यह है कि ख़्वाबों के सुनहरे तिलिस्म टूटे है !!
8 comments:
मलाल ये है कि ख्वाबों के सुनहरे तिलस्म टूटे हैं.
क्या बात है साब.
बढ़िया...आपके तो बेरुखी-तकरार के सब अंदाज ही अनूठे है!
एक सुन्दर रचना !
जान निकल जाती है और रूकती क्यूँ ये सांस नहीं,
जीते हुए भी जींदा होने का होता क्यूँ विश्वाश नहीं!
मेरा होंसला बढाने के लिए हार्दिक धन्यवाद है ji!
कुंवर जी,
अच्छी कविता पर अच्छा होता अगर दुख की इस घड़ी में आप हत्यारों को वेनकाव करती उनकी हैवानियत को उधेड़ती ...
kin lafzon mein tarif karoon.......atyant sundar udgaar.
डरी सी शक्ल बताती है, महीन कांच के टुकडो की
क्रोध में सुरीले कंठ से, कुछ कड़े अल्फाज फूटे है!
-वाह!! बहुत उम्दा!!
बहुत लाजवाब रचना.
रामराम.
.गोदियाल ji jwaab nahi aapka
maan gaye ji aapko
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