Friday, April 16, 2010
निट्ठले व खडूस सारे कामकाजी बन गए है!
मरकर बहतर हूरों व जन्नत पाने की चाह में,
जीते जी दोजख जाने को राजी बन गए है।
सुना है कि बेनमाजी भी नमाजी बन गए है,
निट्ठले व खडूस सारे कामकाजी बन गए है।।
अपना खौफनाक असली चेहरा छुपाने को,
दाड़ी रखकर मिंयाँ घोटा हाजी बन गए है ।
अदाई की रस्म खुद तो निभानी आती नहीं,
और जनाव इस शहर के काजी बन गए है।।
यों तो लोगो को सिखाते फिर रहे हैं कि
ख़ुदा नाफरमान की हिमायत नहीं करता।
पर जब खुद फरमान बरदारी की बात आई,
शराफत को त्याग, दगाबाजी बन गए है।।
भोग-स्वार्थ के लिए आप तो रूदिवादिता व
असामाजिकता के दल-दल में धंसे रहते है।
हक़ की बात पर उनके लिए औरतों के
मुकाम सियासी और समाजी बन गए है ।।
धर्म के नाम पर लोगो को गुमराह करके ,
रंक भी आजकल खुद ही शाहजी बन गए है ।
अपने स्वार्थ हेतु कलयुगी पंडत-मुल्लों के धंधे,
झूठ बोलना और जालसाजी बन गए है।।
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19 comments:
सुना है कि बेनमाजी भी नमाजी बन गए है ।
निट्ठले व खडूस सारे कामकाजी बन गए है।।
वाह्! गौदियाल जी...लाजवाब रचना!
भई बहुत बढिया!!
एक बार फिर जबरदस्त वाली चोट की है जी,बहुत बढ़िया!
कुंवर जी,
wah godial sir.. kya chot ki hai aapne.. bahut khoob..
वाह...बहुत बढ़िया व्यंग...लाजवाब रचना
बहुत बढिया व्यंग्य!!
bitter facts of life !
क्या खुब कहा है आपने!
समझ नहीं पाया,आपका इशारा किधर है
जो सब समझ रहे हैं,क्या सच में उधर है
क्या बात है.. और क्या अंदाज है
क्या खुब कहा है आपने!
जबरदस्त वाली चोट की है
nice :)
यों तो लोगो को सिखाते फिर रहे हैं कि
ख़ुदा नाफरमान की हिमायत नहीं करता।
पर जब खुद फरमान बरदारी की बात आई,
शराफत को त्याग, दगाबाजी बन गए है।।
चलिए भला सामने तो आए...नामजी होने के लिए बधाई..बढ़िया रचना गोदियाल जी धन्यवाद
सभी तो नहीं पर उनमें से मैं भी तो एक हूँ!
आपकी इस रचना में छिपा आपका दर्द महसूस होता है ...बढ़िया रचना के लिए शुभकामनायें गोदियाल जी !
वाह गोदियाल जी! बहुत खूब!!
लाजबाब है जी वाह
मरकर बहतर हूरों व जन्नत पाने की चाह में,
जीते जी दोजख जाने को राजी बन गए है।
सुना है कि बेनमाजी भी नमाजी बन गए है,
निट्ठले व खडूस सारे कामकाजी बन गए है।।
वाह! वाह! पहली पंक्तियों ने ही आनंद दे दिया,......बिलकुल सही कहा आपने......निट्ठले व खडूस सारे कामकाजी बन गए है..........
Ise kahte hain.100 sunaar ki 1 lohar ki........
maja aa gaya...
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