दो ही रोज तो गुजरे
जुम्मे-जुम्मे
मगर अब शायद ही
मगर अब शायद ही
याद हो तुम्हे,
किसी बेतुकी सी बात पर
किसी बेतुकी सी बात पर
भड़ककर
उतर आये थे तुम दल-बल
उतर आये थे तुम दल-बल
सडक पर,
तुमने अपनी नाखुशी जताने को
राह चलते राहगीर को सताने को ,
लिए हाथों में ईंट, पत्थर
तुमने अपनी नाखुशी जताने को
राह चलते राहगीर को सताने को ,
लिए हाथों में ईंट, पत्थर
तुम्हारा जन-जन
कर डाला मिलकर वो
कर डाला मिलकर वो
क्रूर भौंडा सा प्रदर्शन ,
तब चरम पर पहुंचा
तब चरम पर पहुंचा
सबक का वो आह्वाहन
शिकार हुए मंजिल को जाते
शिकार हुए मंजिल को जाते
अनगिनत वाहन,
हासिल होगा क्या?
हासिल होगा क्या?
समझा न सोचना जरूरी
कर डाली अपनी वो
कर डाली अपनी वो
विनाश की हसरत पूरी,
और शायद तुमने जो
और शायद तुमने जो
एक बडा सा पत्थर,
उठाकर उस बेगुनाह सडक के
उठाकर उस बेगुनाह सडक के
सीने पे जडा होगा !
आज अन्धेरे मे, उसी छोर से,
किसी मासूम के कराहने की
आज अन्धेरे मे, उसी छोर से,
किसी मासूम के कराहने की
आवाजें आ रही थी,
शायद ठोकर खाकर,वहीं कहीं
शायद ठोकर खाकर,वहीं कहीं
गिर पडा होगा !!
काश कि तुममे भी थोड़ी
काश कि तुममे भी थोड़ी
संवेदनशीलता होती
और थोड़ा सा
और थोड़ा सा
तुम्हारा भी दिल दुखता !
तनिक तुम भी
तनिक तुम भी
महसूस कर पाते कि
तुम्हारे आक्रोश का
तुम्हारे आक्रोश का
खामियाजा किसने भुगता !!
20 comments:
behar marmik chitran aur sochne ko majboor karta.
शायद आक्रोश स्वयं में एक खामियाजा है
भुगतता कोई और है
आज की वस्तविकता को दर्शाती ये कविता बहुत ही सुंदर है।
बहुत मार्मिक, यह कर्म करने वाले.... किसी भीड पर पत्थर मारने से पहले एक बार सोचे तो सही उस का एक पत्थर कही किसी परिवार को तो नही खत्म कर रहा.... लेकिन शेतान के दिल ओर दिमाग कहा होता है!!!
बस्ती में कम इंसान जहाँ
बसते हैं हरदम शैतान वहां।
उफ़ ! कडवी सच्चाई ...बस हाँथ में पत्थर उठाये घूम रहे है मौक़ा मिले और मार दे ....खामियाजा कौन उठा रहा है इसका किसी को होश नहीं
nice
महीने दो महीने में एकाध पोस्ट अच्छी भी लिखो करो गोदियाल साहब। सब लोग वेरी गुड-वेरी गुड कर सकते हैं क्योंकि आप इनकी पोस्टों पर जाकर वेरी गु़ड और हा... हा.. हा...करते हो। इससे ब्लाग जगत का कोई फायदा नहीं होने वाला। बाकी आपकी फोटो देखने से तो लगता है कि आप समझदार हो।
@ Kumar Jaljala मेरी आँखे खोलने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया ! अल्लाह से सच्चे मन से यही दुआ मांगूंगा कि जो और जिस तरह का सच बोलने की खूबी उसने तुममे दी है, खुदा करे यही खूबी आपकी अगली सात पुस्तों तक खुदा आपके परिवार को भी दे ! आज के जमाने मैं ऐसे सच बोलने वाले कम ही मिलते है, शायद आप भी डाक्टर घोटा वाली किसी सच बोलने वाली संगती या विरादरी में बैठते होंगे जरूर , क्योंकि उसका असर मुझे आपके शब्दों में साफ़ दिखाई दे रहा है ! इस सच के धन्यवाद के तौर पर आओ मेरे साथ मिलकर आपके लिए खुदा से दुआ मांगे ;
ला इलाह इल अल्हा, मोहम्मद उर रसूल अल्लाह
श्रीमान कुमार जलजला का हो भला !!!!!!
आदमी गुस्से मे बहुत कुछ कर देता है..कभी नही सोचता की नुकसान क्या हो रहा है...अपने तो आक्रोश में हैं..बेचारे दूसरे परेशान होते हैं...बढ़िया प्रसंग..बधाई
आपने बहुत अच्छा लिखा साथ ही सबक भी पढ़ाया. ऐसे आतंकवादियों के साथ टिट फार टैट ही होना चाहिये..
काश कि तुममे भी थोड़ी संवेदशीलता होती
और थोड़ा सा तुम्हारा भी दिल दुखता !
तनिक तुम भी महसूस कर पाते कि
तुम्हारे आक्रोश का खामियाजा किसने भुगता !!
बहुत मार्मिक चित्रण !!
काश!! इतना ही समझ जाते....
बहुत सुन्दर रचना.
जुम्मा-जुम्मा आठ दिन में ही तो पूरी संरचना समाई हुई है!
बहुत मार्मक रचना!
बधाई!
"काश कि तुममे भी थोड़ी संवेदशीलता होती....."
इसी की तो दरकार है,होती तो बहुत सी समस्याए अपने आप सुलझ जाती!समस्या होती ही नहीं!
अति संवेदनशील होने के बहाने संवेदनहीन होते लोग,
सबको जगाने के चक्कर में अपने होश खोते लोग!
कुंवर जी,
bas ji ye to haalaat hi aise ho gaye hain ki koi ye nhi sochta ki jo tum karne jaa rahe ho usse kis ko kitna nuksaan pahunchega
bas ek lahar bana ke chal padte hain aise hi
bahut acha aur sanvedna se bharpoor lekh
बहुत सटीक और सत्य को कहती रचना.
रामराम.
तनिक तुम भी महसूस कर पाते कि
तुम्हारे आक्रोश का खामियाजा किसने भुगता !!
आज देश में हर जगह आक्रोश ही छाया रहता है..और आपने सही चित्र दिखा दिया...काश लोग इतना सोच पाते.
आपकी यह रचना समयोपयोगी तथा सत्य वचन है ... भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता है ... इसी बात का फायदा उठा कर कितने गलत काम किये जाते हैं ... इंसान बुद्धिभ्रष्ट होकर जाने क्या क्या कर डालता है ..
@Godiyal ji- beautiful creation! Touching and meaningful.
@ kumar Jaljala- its not wise to humiliate anyone. He has indeed written a beautiful poem with wonderful theme.
Instead of criticizing someone, better go and write something, worth reading.
@ Indranil ji- Your blog page is not opening.
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