आज लिखने का कतई मूड नहीं है, एक अपनी पुरानी कविता दोबारा पोस्ट कर रहा हूँ , उम्मीद करता हूँ कि आप लोगो को पसंद आयेगी;
इक दिन वो भी दिन आयेगा,
जब मेरी भी दाल गलेगी दिल्ली में !
'साडे ली ते तुसी ही ग्रेट हो मौन जी,
साड्डी त्वाडे नाल गलेगी दिल्ली में !!
ईर्ष्य न मुझको कुछ भी तुमसे,
तुमने भी अपनी खूब गलाई यहाँ !
मगर जब मेरी गलनी चालू होगी ,
तो सालो-साल गलेगी दिल्ली में !!
ऐसे लूच्चे-लफंगे यहाँ गला रहे है,
कैसे-कैसे गुंडे-मवाली चला रहे है !
मैं तो इनसे फिर भी बेहतर हूँ,
मेरी हर हाल गलेगी दिल्ली में !!
अपने दम पर मैं लड़ता आया हूँ,
कदम-कदम बढ़ता आया हूँ !
तुम मैडम की बाणी में कहते हो ,
मेरी वाचाल गलेगी दिल्ली में !!
गरीब की न फिर ऐसी गत होगी,
हर बच्चे के सिर छत होगी !
पेट-फिकर में तब और न कोई माँ,
ऐसे बदहाल गलेगी दिल्ली में !!
Tuesday, April 13, 2010
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19 comments:
वह दिन भी ईश्वर दिखलायेगा जल्द बहुत
ये कुत्ते जूते खायं, हमारी दिल्ली में
इन भूत पिशाचों के संग काम करूँ कैसे
जी करता आग लगा दूं , ऐसी दिल्ली में !
शुभकामनायें गोदियाल जी !
"ऐसे लूच्चे-लफंगे यहाँ गला रहे है,
कैसे-कैसे गुंडे-मवाली चला रहे है !
मैं तो इनसे फिर भी बेहतर हूँ,
मेरी तो हर हाल गलेगी दिल्ली में !!"
SAHI TO HAI JI,
KUNWAR JI,
"ऐसे लूच्चे-लफंगे यहाँ गला रहे है,"
इसके आगे और कुछ कहने को रह गया क्या?
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
ab tak chupa kar rakha tha bahut hi sunder rachanaa
दर्द साफ़ दीखता है....
ये लड़ाई जारी रखेंगे हम सब.
पर जब मेरी गलनी चालू होगी,
तब सालो-साल गलेगी दिल्ली में !!
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
गरीब की न यहाँ फिर ऐसी गत होगी,
हर बच्चे के सिर छत होगी !
पेट-फिकर में तब और न कोई माँ,
इसकदर बदहाल गलेगी दिल्ली में !!
kash aisa hi ho
ऐसे लूच्चे-लफंगे यहाँ गला रहे है,
कैसे-कैसे गुंडे-मवाली चला रहे है !
मैं तो इनसे फिर भी बेहतर हूँ,
मेरी तो हर हाल गलेगी दिल्ली में ...
आपकी तो दाल ही बेहतर है इनसे ... गुंडागर्दी, बदमाशी भी बेहतर हो इनसे तब ही गालेगी असली दाल ... अच्छा है गौदियाल जी ...
बढ़िया है....दिल्ली में दाल सबकी गल जाती है बस गलानी आनी चाहिए
हमारी तो नही गल रही....आप कोशिस कर के देख लो....शायद कामयाबी मिल जाए:)
आमीन.
गोदियाल जी, बहुत खूब लिखा है, पर सच ये है आपकी नहीं गलेगी।
एक बात याद आ गई,
बेटा मां से बोला, "मां-मां, मैं थानेदार बनूंगा, और सबसे पहले तन्नै जेल में बंद करूंगा"।
मां बोली, "बेटा, तू थानेदार ही नहीं बनेगा"
आप भी अपनी दाल नहीं गला पाओगे।
लेकिन काश आपका सोचा पूरा हो सकता तो बेहतर होता।
ऐसे लूच्चे-लफंगे यहाँ गला रहे है,
कैसे-कैसे गुंडे-मवाली चला रहे है !
मैं तो इनसे फिर भी बेहतर हूँ,
मेरी तो हर हाल गलेगी दिल्ली में ...
-हमारी शुभकामनाएँ आपकी जरुर गले.
बहुत बढ़िया साहिब!
यह तारीफ बहुत ङी अच्छी लगी!
अल्टीमेट. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
मैं तो इनसे फिर भी बेहतर हूँ,
मेरी तो हर हाल गलेगी दिल्ली में !!"
क्या आत्मविश्वास है
पूरा यकीन है
गलेगी दाल पर दाल है कहाँ
meri taraf se zordaar taaliyaan ia sundar rachna ke liye Godiyaal sir..
गोदियाल जी, बहुत खूब लिखा है,
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