पटाने को तब इक अदद सी हसीना,
इस दिल नौसिखिये ने झख लाख मारी !
परखने को दुनिया के इशारों की भाषा,
मजनू अनाडी ने एक नहीं,कई आँख मारी !!
आ गई जब पास जवानी की देहलीज,
ढूढने लगा दिल इक अदद यार अपना !
उस शहर में यूँ तो हसीनाएं बहुत थी,
हमने राह में ही हुश्न की मूरत ताक मारी !!
पहली नजर में ही हो गए हम दीवाने,
आस-पास मंडराए यूँ, ज्यों समा पे परवाने !
और फिर जब व्याह के आयी हसीना घर में,
कह उठे सब, चिडी तो तुमने बड़ी पाक मारी !!
चन्द लम्हे तो बड़े मौज-मस्ती में गुजरे,
घरवाली के चक्कर में, भूले सब दुनियादारी !
बरस बाद,जलवे दिखाने पे उतरी जब कमसिन ,
सोचते रह गए, तोप हमने क्या ख़ाक मारी !!
Wednesday, January 20, 2010
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8 comments:
क्या बात है गोदियाल जी, तोप ना सही बंदूक तो मारी. आशिकाना मिजाज की अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद् एवं बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
बहुत खूब गोदीयाल जी, बढिया लगा पढकर।
गोदियाल जी-
आज तो बसंत उतर आया है
मदनोत्सव का असर छाया है
बसंतो्त्सव की बधाई
सफल आशिक हैं आप तो
अरे क्या बात है बसंत पंचमी पर सफल आशिक की कहानी...शुभकामनायें.
ha..ha..godiyaal ji bhaabhi ji blog nahi padhati kyaa!!! jhaadu pochaa lagwaaengi!!!Basant panchmi ki shubh kamnaa!!!
वाह !! वाह !!
हैप्पी वेलेन्टाईन डे गोदियाल जी , बांकी कविता तो कई लईके ठेलेंगे ही अपनी अपनी कमसिन को , मजा आ गया
अजय कुमार झा
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