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Thursday, November 19, 2009

कभी मेरे शहर आना !

क्योंकि तुम मानते हो कि
शहर इक खुशनुमा जिन्दगी
जीने का आधार है न ?
तभी तो तुम्हे ,
शहरी जिन्दगी से
इतना प्यार है न ??
मगर ये बात सम्पूर्ण सच नही,
तुम्हे कैसे समझाऊ ?
यहाँ सांझ ढलने के बाद,
मै कैसे जीता हूं,
तुम्हे क्या बताऊ ?


अरे नासमझ,
गांव एवं शहर की जिन्दगी मे,
फर्क हैं नाना !
शहरी जिन्दगी देखनी हो,
तो कभी
मेरे शहर आना !!
तुम्हे दिखाऊंगा कि
कथित विकास की आंधी मे,
मेरा शहर कैसे जीता है !
प्यास बुझाने को
पानी के बदले , पेट्रोल-डीजल,
मिनरल और ऐल्कोहल पीता है !!

क्या घर, क्या शहर,
हर दिन-हर रात की
मारा-मारी में,
वो सिर्फ जीने के लिए जीते है !
जीवन की इस जद्दोजहद में
क्या शेर, क्या मेमना
सब के सब मजबूरी में ,
एक ही घाट का पीते है !!

ऊँचे उठने की चाहत में,
मकान-दूकान, सड़क-रेल,
यहाँ सब के सब,
टिके है स्तंभों पर !
जिन्दगी भागती सरपट
कहीं जमीं के नीचे,
तो कहीं खामोश लटकती ,
खम्बों से खम्बों पर !!

गगनचुम्बी इमारतों में
मंजिल तक जाने को,
पैर भी लिफ्ट ढूंढते है ,
खुद नहीं आगे बढ़ते !
ऊँचे-ऊँचे मॉल पर ,
सीडियों से
चड़ते -उतरते वक्त
घुटने नहीं भांचने पड़ते !!

एक बहुत पुराने,
किले का खंडहर जो
चिड़ियाघर के पास है ,
वहाँ आजकल दिन में भी
अतृप्त आत्माओं का वास है !
उसके सामने से
एक सीधी सड़क
पहुंचा देती है ,
उस एक खुले से मैदान में
जो अपने में ख़ास है !!

राजा से लेकर
रंक तक,
यहाँ विचरण करती,
हर तरह की हस्ती हैं !
इस मैदान से जो
सीधी सड़क जाती है,
उसके एक तरफ
मुर्दा-परस्तो की भी बस्ती है !!
उनके लिए तो बस आज है,
न कल था, न कल की
कोई आश है,
न कोई झूठ है न कोई सांच है !
सूरज ढलने पर
जहां हर रोज,
खचाखच भरे रंगमंच पर
सभ्यता दिखाती
अपना नंगा नाच है !!

कहीं मेरे इस शहर में,
कोई अभागन,
देह बेच कर भी दिनभर
भरपेट नहीं जुटा पाती है !
और कहीं,
कोई नई सुहागन ,
दुल्हे को वरमाला पहनाने हेतु,
क्रेन से उतारी जाती है !!

मैं तो बस,

हैरान नजरो से
देख-देखकर ,
सोचता रहता हूँ कि ,
यहाँ वन्दगी गा रही

यह कौन सा तराना !
ये दोस्त !
शहरी जिन्दगी देखनी हो,
तो कभी,
मेरे शहर आना !!


21 comments:

satyendra... said...

nice poetry, full of emotions!

दीपक 'मशाल' said...

दिल को सिर्फ छूती हुई नहीं बल्कि उसके भीतर जाके उसके घावों को कुरेदती हुई सी कविता लिखी आपने,,, शहर मुझे भी कभी पसंद नहीं आये...
जय हिंद...

श्रीश पाठक 'प्रखर' said...

नंगा सच...पर हम सब का भोगा हुआ सच..हम सब के भीतर का सच..

Science Bloggers Association said...

जिंदगी को आईना दिखा दिया आपने।
बधाई इस सफल प्रस्तुति के लिए।
------------------
11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?

Mithilesh dubey said...

सुन्दर रचना , बधाई

वन्दना said...

ufff! aapke lekhan ne rongte khade kar diye.........dil mein bahut gahre utar gayi.........sach ko aaina dikhti rachna .......ab kahne ko bacha kya hai.

M VERMA said...

शहरी जिन्दगी देखनी हो,
तो कभी,
मेरे शहर आना !!
बेहतरीन अभिव्यक्ति, स्खलित हो रहे शहरी संस्कृति को बखूबी उकेरा है

शरद कोकास said...

किसी शायर का एक मिसरा याद आ गया " आज ये शहर खफा है के मै सच बोलता हूँ " आपने शहर के बारे मे जो सच बयाँ किया है उससे यही लगता है । अजीब है यह शहर मे रह्ना भी मन होत है कि रहें और यह भी कि यहाँ न रहें ।

Udan Tashtari said...

अजब बात कही कि जान ही नहीं पड़ता
भला ये तेरा शहर या कि ये मेरा शहर है...

Rajey Sha said...

आदमी के अंदर भी एक ऐसा ही शहर होता है।

Rekhaa Prahalad said...

aapke shahar aaye hue ko jara mere shahar bhi bhej dena taaki dekh le ki har shar ki hoti ek si dastan.

जी.के. अवधिया said...

"क्या घर, क्या शहर,
हर दिन-हर रात की
मारा-मारी में,
वो सिर्फ जीने के लिए जीते है!"



सही है, जीने का कोई उद्देश्य नहीं रह गया है, सिर्फ जीने के लिये जीते हैं!

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब लिखी आप ने यह रचना दिल के तारो को छु गई.धन्यवाद

अजय कुमार said...

जिन्दगी का कच्चा चिट्ठा या कहें सच्चा चिट्ठा

मुनीश ( munish ) said...

@"कहीं मेरे इस शहर में,
कोई अभागन,
देह बेच कर भी दिनभर
भरपेट नहीं जुटा पाती है !
और कहीं,
कोई नई सुहागन ,
दुल्हे को वरमाला पहनाने हेतु,
क्रेन से उतारी जाती है !!"

Kamaal ka observation ! Very moving poem indeed !

चंदन कुमार झा said...

बहुत सुन्दर रचना…………………!!!!

Babli said...

अरे नासमझ,
गांव एवं शहर की जिन्दगी मे,
फर्क हैं नाना !
शहरी जिन्दगी देखनी हो,
तो कभी
मेरे शहर आना !!
बहुत सुंदर और शानदार रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! दिल को छू गई आपकी ये रचना!

sada said...

शहरी जिन्दगी देखनी हो,
तो कभी
मेरे शहर आना ।

सच को उजागर करते शब्‍द हर पंक्ति को बेमिसाल बना गये, जीवन की जद्दोजहद लाजवाब प्रस्‍तुति ।

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

शहरी जिन्दगी देखनी हो,
तो कभी,
मेरे शहर आना !!

दिल से निकली आवाज़ है ....

संजय भास्कर said...

लाजवाब पंक्तियाँ

संजय भास्कर said...

जिंदगी को आईना दिखा दिया आपने।
बधाई इस सफल प्रस्तुति के लिए।
LAJWAAB