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Thursday, November 26, 2009

आह्वान- उठ, जाग मुसाफिर जाग !

कद्र हो जहां शान्ति की, वहां शान्ति का इजहार कर,
यही इन्सानियत का सार है,हर इंसान से प्यार कर,
पथ अहिंसा का नितान्त, यहाँ एक श्रेष्ठतम मार्ग है,
पर दुश्मन न माने प्यार से, पलटकर तू वार कर !


यूं हम सदा से शान्ति के, पथ पर ही चलते आये है,
किन्तु ऐवज मे हमने हमेशा, जख्म ही तो पाये है,
जिल्लत उठाई खूब,मुगलों और फिरंगियो से हार कर,
अगर दुश्मन न माने प्यार से, पलटकर वार कर !


आखिर इस तरह कब तक सहेगा, जुल्म सहना पाप है,
क्रूर दानव दर पे है बैठा, यह हम पर एक अभिशाप है,
छद्म युद्ध थोंपा है उसने, निरपराध का नरसंहार कर,
गर दुश्मन न माने विनम्रता से, पलटकर तू वार कर !


आपस मे ही हमको लड मराया, जाति-धर्म की ठेस ने,
भाषा-क्षेत्र मे बांट अपनो को , जयचन्द पाले देश ने,
खुले हाथ को बना मुठ्ठी, जन-धन को रख संवार कर,
गर दुश्मन न माने विनम्रता से, पलटकर वार कर !


अन्याय की आहट पे गर, तू खुद ही नजरें फेर लेगा,
इसे शत्रु अशक्तता समझकर, आ तुझे फिर घेर लेगा,
लोग कायर समझ बैठे , ऐंसा न कोई व्यवहार कर,
गर दुश्मन न माने विनम्रता से, पलटकर वार कर !


जमने न दे हर्गिज लहू को, वीरता दिखाना फर्ज है,
मत भूल जननी,जन्म-भूमि का,एक तुझ पर कर्ज है,
न उलझ मायाजाल मे, स्वार्थ की हद पार कर,
अगर दुश्मन न माने विनम्रता से, पलटकर वार कर !


छिपकर सदा की तरह, वैरी का तुझपर वार होगा,
खुद ही लड्ना है तुझे, कोई न तेरा मददगार होगा ,
जो समझे न बात को शिष्टता से, उससे तकरार कर,
गर दुश्मन न माने विनम्रता से, पलटकर वार कर !


सरहदो पर हौंसला असुर का, हो रहा नित सशक्त है,
उठ,जाग मुसाफ़िर जाग, अभी भी पास तेरे वक्त है,
तू दे जबाब मुहतोड उसको, घाट मृत्यु के उतार कर,
अगर दुश्मन न माने विनम्रता से, पलटकर वार कर !


मुफलिसों के तलवों जिन्दगी, घुट-घुट के ही खो जायेगी ,
जाग मुसाफिर जाग, वरना बहुत देर हो जायेगी,
फिर फायदा क्या, अगर पछताना पड़े थक-हार कर,
अगर दुश्मन न माने प्यार से, पलटकर तू वार कर !

22 comments:

जी.के. अवधिया said...

"पर दुश्मन न माने प्यार से, पलटकर तू वार कर!"

यही श्री कृष्ण ने अर्जुन से भी कहा था!

ललित शर्मा said...

जो प्यार दे उसे प्यार करो
प्यार से ना माने उसका संहार करो

जय हिंद

निर्मला कपिला said...

अन्याय की आहट पे गर, तू खुद ही नजरें फेर लेगा,
इसे शत्रु अशक्तता समझकर, आ तुझे फिर घेर लेगा,
लोग कायर समझ बैठे , ऐंसा न कोई व्यवहार कर,
गर दुश्मन न माने विनम्रता से, पलटकर वार कर !
और आखिरी पहरा बहुत ही अच्छा लगा लाजवाब रचना है बधाई

राजीव तनेजा said...

अगर दुश्मन न माने प्यार से, पलटकर वार कर !

सत्य वचन...


आज हँसते रहो पर गाँधी जी के साथ आपकी फोटो लगाई है... http://hansteraho.blogspot.com/2009/11/blog-post_26.html

sada said...

गर दुश्मन न माने विनम्रता से, पलटकर वार कर !

बहुत ही सुन्‍दर भाव, एवं सत्‍यता के निकट हर पंक्ति, आभार के साथ शुभकामनायें ।

महफूज़ अली said...

Godiyal ji..... RAM....RAM....



छिपकर सदा की तरह, वैरी का तुझपर वार होगा,
खुद ही लड्ना है तुझे, कोई न तेरा मददगार होगा ,
जो समझे न बात को शिष्टता से, उससे तकरार कर,
गर दुश्मन न माने विनम्रता से, पलटकर वार कर !

in panktiyon ne dil ko chhoo liya....

bahut sunder abhivyakti....

वन्दना said...

soye huye ko jagana aasan hota hai magar jage huye ko kaise koi jagaye..........aapki koshish lajawaab hai.

pls read-------http://redrose-vandana.blogspot.com

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सटीक और मार्मिक अभिव्यक्ति.

रामराम.

पं.डी.के.शर्मा"वत्स" said...

सरहदो पर हौंसला असुर का, हो रहा नित सशक्त है,
उठ,जाग मुसाफ़िर जाग, अभी भी पास तेरे वक्त है,
तू दे जबाब मुहतोड उसको, घाट मृत्यु के उतार कर,
अगर दुश्मन न माने विनम्रता से, पलटकर वार कर !


जब दुश्मन आकर छाती पर सवार हो जाएगा...तब सोच लेंगें कि कैसे निपटना है...अभी तो बस सोने दीजिए जनाब्!

अजय कुमार said...

सही है- हम कब तक दोस्ती का खेल खेलेंगे

Pandit Kishore Ji said...

palat kar tu vaar ka.......bahut achhe

Rajey Sha said...

हमें तो आपकी इस ब्‍लॉग पोस्‍ट पर तोप तलवार तीर ही नजर आये, लगा साक्षात युद्ध ही छि‍ड़ गया है बहुत ज्‍यादा प्रभावशाली थे ये शब्‍द।


सही है शब्‍द भी तो बम बारूद जैसे ही होते हैं। पर खतरनाक बात तो ये है कि‍ इंसान ही इनका इस्‍तेमाल कर पाता है। और उसके बाद 2012 नाम की फि‍ल्‍म तो है ही।

महेन्द्र मिश्र said...

सच कह रहे है सरकार ६० वर्षो से सो रही है .. सटीक अभिव्यक्ति.....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...

मुफलिसों के तलवों जिन्दगी,
घुट-घुट के ही खो जायेगी ,
जाग मुसाफिर जाग,
वरना बहुत देर हो जायेगी,
फिर फायदा क्या,
अगर पछताना पड़े थक-हार कर,
अगर दुश्मन न माने प्यार से,
पलटकर तू वार कर !

दुशमन और प्यार.
आप भी क्या बात करते हैं सरकार!
करो दुश्मन से दुश्मनी
और मित्र से प्यार!

डॉ टी एस दराल said...

पथ अहिंसा का नितान्त, यहाँ एक श्रेष्ठतम मार्ग है,
पर दुश्मन न माने प्यार से, पलटकर तू वार कर !

पूरी तरह सहमत।
आज के परिवेश में यह अत्यन्त आवश्यक है।

विनोद कुमार पांडेय said...

छिपकर सदा की तरह, वैरी का तुझपर वार होगा,
खुद ही लड्ना है तुझे, कोई न तेरा मददगार होगा ,
जो समझे न बात को शिष्टता से, उससे तकरार कर,
गर दुश्मन न माने विनम्रता से, पलटकर वार कर !

आत्मविश्वास बढ़ाती और सार्थक संदेश देती हुई रचना ..हर लाइन लाज़वाब हौसला बढ़ जाता है ऐसी कविताओं के पान से..
धन्यवाद गोदियाल जी रचना बढ़िया लगी

राज भाटिय़ा said...

लोग कायर समझ बैठे , ऐंसा न कोई व्यवहार कर,
गर दुश्मन न माने विनम्रता से, पलटकर वार कर !
बहुत सुंदर कविता धन्यवाद

राज भाटिय़ा said...

अजी कसाव की मां कहा गई.... मै तो पढने आया था?

दिगम्बर नासवा said...

यूं हम सदा से शान्ति के, पथ पर ही चलते आये है,
किन्तु ऐवज मे हमने हमेशा, जख्म ही तो पाये है,

SACH LIKHA HAI GOUDIYAAL JI ... AAJ JAROORAT HAI TALWAAR UTHAANE KI....PALAT KAR VAAR KARNE KI ... BAHUT UTTAM RACHNA HAI ..

Udan Tashtari said...

सटीक!! जय हो!! जय हिन्द!!

Babli said...

बहुत ही सुन्दर, सठिक, मार्मिक और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गई ! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!

Mrs. Asha Joglekar said...

अगर दुश्मन न माने प्यार से, पलटकर तू वार कर !
बिलकुल सही यही है गीता का सार ।