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Thursday, September 17, 2009

कशिश !

आज लिखने के लिए कुछ नहीं मिला तो यह छोटी सी नज्म कह लो या गजल , प्रस्तुत है:

इक मोड़ पे लाकर छोड़ दिया,
हमसे क्यों इतने खफा निकले !
कुछ खोट हमारी वफ़ा में था,
जो इस कदर बेवफा निकले !!

हमको तुम पर ऐसा यकीन था,
न छोडोगे ताउम्र साथ हमारा !
बीच राह में छोड़ के जालिम,
खामोश यों इस दफा निकले !!

पहलू में चले थे हम बनने को,
इक खुबसूरत सी गजल तुम्हारी !
इल्म न था कि लिखे जायेंगे जिस
सफे पर हम, टूटा वो सफा निकले!!

हमने तो कर दिया था अपना,
हर इक पल कुर्बान तुम्ही पर !
सोचा न कभी हाशिये पर अपना ,
जीने का यह फलसफा निकले!!

समझ न पाए अब तक हम,
दस्तूर बेरहम जमाने का !
नुकशान निर्दोष के खाते में,
और दोषी का नफा निकले!!

7 comments:

M VERMA said...

जब लिखने को कुछ नही है तो आपने इतनी खूबसूरत रचना लिखी तो --
बहुत खूब

Udan Tashtari said...

समझ न पाए अब तक हम,
बेरहम दस्तूर जमाने का !
नुकसान निर्दोष के खाते में,
और दोषी का नफा निकले!!


--बहुत बेहतरीन!! वाह!

Mithilesh dubey said...

बहुत खुब। लाजवाब रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई...........

AlbelaKhatri.com said...

गोदियाल जी गोद डाला
___पहाड़ खोद डाला
_________मज़ा आया.........
बधाई !

pooja joshi said...

bahut sundar prastuti hai....shandar abhiyakti...

S D said...

aapki nazm "Indian Jucial System" ke liye satik hai. Jab likne ko hai tab bhi lajbab aur jab likhne ko nahi to aur bhi lajbab. Wah Ustad........

S D said...

Corrigendum "Indian Judicial System" Not Jucial...sorry for an error...