तन-आबरू बचाते कुछ मर गये, तो कुछ जिंदे है,
हर दरख़्त की शाख पर बैठे,डरे-डरे सब परिंदे है।
खौफजदा नजर आता है, हर सरपरस्त शहर का,
हर दरख़्त की शाख पर बैठे,डरे-डरे सब परिंदे है।
खौफजदा नजर आता है, हर सरपरस्त शहर का,
क्योंकि बेख़ौफ़ सड़कों पे घूमते फिर रहे दरिंदे है।
शठ-कुटिलो का ही है बोल-बाला यहाँ हर तरफ,
नारकीय जीवन जी रहे देखो,सुशील (वा)शिंदे हैं।
यह न पूछो कि दहशत का ये आलम हुआ कैसे,
दरवान जो थे, कुछ सोये पड़े है तो कुछ उनींदे है।
शर्म से सर हिन्द का तो, झुक रहा अब बार-बार,
किन्तु बेशर्म बने बैठे भ्रष्ट,जनता के नुमाइन्दे है।
दर्द हजारों है, फरियाद करें तो करें किससे 'परचेत',
मर्जी के मालिक हो गए , यहाँ के सब कारिंदे है।
3 comments:
आभार
आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणियों का .
बेहद तीखा तंज है व्यवस्था गत हराम खोरी पर ,हराम खोरों पर .
मर्जी के मालिक हो गए , यहाँ के सब कारिंदे है।bahut sahi bayan.....
शठ-कुटिलो का ही है बोल-बाला यहाँ हर तरफ,
नारकीय जीवन जी रहे देखो,सुशील (वा)शिंदे हैं।
यह न पूछो कि दहशत का ये आलम हुआ कैसे,
दरवान जो थे, कुछ सोये पड़े है तो कुछ उनींदे है।
शर्म से सर हिन्द का तो, झुक रहा अब बार-बार,
किन्तु बेशर्म बने बैठे भ्रष्ट,जनता के नुमाइन्दे है।
एकदम सही चित्रण ।
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