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Friday, October 23, 2009

ऐसा अद्भुत देश है मेरा !


हमारे देश की इस पावन धरती ने भी,
भांति-भांति के जीव जने !
कुछ ने अपने हाथो ही चमन उजाडा तो,
कुछ गुलिस्तां की नींव बने !

कभी बनी राम-कृष्ण, बुद्ध व गांधी की भूमि,
तो कभी क्रूर मुगलों के तीर सहे !
कहीं पाला कायर-जयचंदों को तो,
कहीं पृथ्वी-भगत सिंह जैसे वीर हुए !

कहीं बहती यहाँ प्यार की गंगा और,
कहीं नफरत के भी बीज बुए !
कहीं खाप हमारी पहचान बनी तो,
कहीं रांझा और हीर हुए !

बलशाली भी बहुत हुए, उतरे वे अखाडे में,
तो दुनिया ने उन्हें कहा खली !

कहीं कायर करता वार छुपकर बाड़े से,
और खुद को कहता नक्सली !

आजाद हुई यह धरती जब गुलामी से तो,
नेता मिला इसे ऐसा कमीना !
जो लूट रहा दोनों हाथो से, जनता को
दिखाता गुड है और खिलाता पीना !

नोट : 'पीना' का अर्थ है, सरसों से तेल निकालने के बाद जो खली बचती है !

23 comments:

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह.. वाह.... अच्छी कविता के लिये साधुवाद स्वीकारें...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...

कविता के माध्यम से अनमोल मोती प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद!

sada said...

बहुत ही अच्‍छी शब्‍द रचना ।

संजय बेंगाणी said...

एक तरफ दिन है तो दुसरी ओर रात है.

राज भाटिय़ा said...

वाह क्या बात है, बहुत सुंदर

ओम आर्य said...

बिल्कुल सही है कई मायनो मे हमारा देश ऐसा ही है ......खुबसूरत रचना!

महफूज़ अली said...

bilkul sahi .....aisa desh hai mera........

M VERMA said...

आजाद हुई यह धरती जब गुलामी से तो,
नेता मिला इसे ऐसा कमीना !
बहुत सुन्दर

'अदा' said...

गोदियाल जी,
यह एक सार्थक कविता है...या फिर यों कहें एक पूर्ण कविता है ..
अच्छाइयों के साथ बुराइयों को भी आपने अपनाया है..
बहुत सही...
बधाई...

शरद कोकास said...

पीना का यह सुन्दर प्रयोग पसन्द आया ।

बेचैन आत्मा said...

पहले नेता की ताकत 'दे' थी
अब नेता की ताकत 'ले' है।
ने ता के पास 'ता' है बस 'ने' गायब हो गया है।

Mishra Pankaj said...

गोदियाल साहब नमस्कार, देरी से आया माफी .....सुन्दर लगी आपकी ये कविता

संगीता पुरी said...

विविधता से भरे देश की सुंदर व्‍याख्‍या की है .. तभी तो हमारा देश महान है .. बढिया रचना !!

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

जबरदस्त ....

देखिये ...एक तरह बाबा रामदेव जैसे समाज सुधारक तो दूसरी तरफ डॉ. जाकिर नायक जैसे समाज कंटक भी यहीं हुए हैं ....

खुशदीप सहगल said...

जिन्हें नाज़ है हिंद पर...
कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं...

जय हिंद...

अम्बरीश अम्बुज said...

आजाद हुई यह धरती जब गुलामी से तो,
नेता मिला इसे ऐसा कमीना !
जो लूट रहा दोनों हाथो से, जनता को
दिखाता गुड है और खिलाता पीना !
wah! kya baat hai, sundar rachna..

दिगम्बर नासवा said...

EK SHASHAKT AUR ACHHE KAVITA HAI .... DESH KA CHARITR KITNA VIVIDH HAI .... AAPNE IS RACHNA MEIN BAAKHOOBI UTAARA HAI ...

ajit gupta said...

अच्‍छा और बुरा साथ-साथ ही रहते हैं, बस अच्‍छे को पहचानकर बढाने की आवश्‍यकता है। बधाई।

Mumukshh Ki Rachanain said...

जहाँ थोडी-बहुत झुंझलाहट, उग्रता दिखी, वहीँ ओजस्विता के भी दर्शन मिले,

उस नक्सलवाद की चिंगारी भी तो नज़र आ रही है जो सोद्देश्य होता है, चाहे इसे क्रांति का नाम दें, आन्दोलन का नाम दें, विद्रोह का नाम दे, अवसाद का नाम दें..............

अति सुन्दर प्रस्तुति, समसामयिक........

बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

अमिताभ श्रीवास्तव said...

yah kese ho gayaa? itana achha blog mujhse kese chhoot gayaa. ynha to rachnaaye apne poore rang me khili hui he,jisase saraabor hone se me ab tak vanchit tha/ kher..der aayad, durust aayad../
aapki rachnaye desh, dharm, peeda aour kuchh kasak me lipati hui insaan ko disha de rahi he/ aankhe khol rahi he/ wah, gazab ../ prabhaavit hua../ abhi to aapke poore blog ko padhhnaa he.../ pahle padhhunga...

निर्मला कपिला said...

हमारे देश की इस पावन धरती ने भी,
भांति-भांति के जीव जने !
कुछ ने अपने हाथो ही चमन उजाडा तो,
कुछ गुलिस्तां की नींव बने !
jo neeंव डाआळ घाय़ै थे आज उसी नींव को दीमक की तरह कुछ लोग खा रहे हैं। अच्छी रचना है

विनोद कुमार पांडेय said...

कभी बनी राम-कृष्ण, बुद्ध व गांधी की भूमि,
तो कभी क्रूर मुगलों के तीर सहे !
कहीं पाला कायर-जयचंदों को तो,
कहीं पृथ्वी-भगत सिंह जैसे वीर हुए !

सुंदर रचना..धन्यवाद!!!

padmja sharma said...

पुराने वक्त को याद करने के अलावा बचा ही क्या है ? फिर भी उम्मीद की किरण के लिए सदा खिड़की खोलकर रखनी चाहिए .राजनीति में भले लोगों को आना चाहिए .कविता सटीक है .