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Wednesday, May 13, 2009

खत्म हुआ महाकुम्भ

गोटी फिट कर रहे फिर से, राजनीति के खिलाडी,
दुविधा मे पडे है सबके सब, धुरन्दर और अनाडी,

सोच रहे इस महापर्व मे वो, परमपरागत मतदाता,
खुदा जाने उन पर कौन सा जुल्म, ढा गये होंगे !
पता नही कितने नेता, जो कल तक केन्द्र मे थे,
आज फिर से अचानक, हाशिए पर आ गये होंगे !!

सड्को पर फिर एक बार, खूब रोई आचारसंहिता,
सभी ग्रन्थ असहाय दिखे, क्या कुरान, क्या गीता,

सार्वजनिक मंचो पर अभद्रता ने, खूब जल्वे विखेरे,
विकास स्तब्ध, जाति-धर्म, ऊंच-नीच ही छा गये !
दिल्ली के संगम घाट पर, लोकतन्त्र के महाकुम्भ मे
एक बार फिर, जाने कितने और, पापी नहा गये ?????

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आज देश रोता है !

घी में गाय की चर्बी,
दूध में यूरिया,
अनाज में कंकड़,
मसालों में बुरादा,
सब्जी में रसायन,
दालो पर रंग !

और तो और,
जिसकी सर-जमीं पर,
सरकार ही मिलावटी है,
तो अब रोओ-हंसो,
जीना इन्ही संग !!

मिलावट और बनावटीपन
का युग है
अपने चरम पर पहुंचा
कलयुग है
आज सराफत की पट्टी
अल्कैदा लिए है !

उसे रोना ही होगा
अपनी किस्मत पर,
क्योंकि आजादी के बाद
उसकी माटी ने,
इंसान ही सारे मिलावटी
पैदा किये है !!

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मन की व्यथा-कथा सारी ही,शब्दों में ही भर डाली।
खामोशी से चोट हृदय की, नस-नस में कर डाली।
सीमित शब्दों लिख दी हैं, बड़ी चुटीली बातें।
जितनी बार पढ़ो उतनी ही मिलती हैं सौगातें।
भारत माता की खातिर, उत्सर्ग किया प्राणों का।
नेताओ के लिए नही है, कोई अर्थ बलिदानों का।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

शुक्रिया, शास्त्री साहब,
बहुत ही ख़ूबसूरत टिपण्णी दी है आपने !
धन्यवाद,