बयां हर बात दिल की मैं,सरेबाजार करता हूँ,
कितनी बेवकूफियां मैं, ऐ मेरे यार करता हूँ।
जबसे हुआ हूँ दीवाना, तेरी मय का,ऐ साकी,
सुबह होते ही शाम का,मैं इन्तजार करता हूँ।
अच्छा नहीं अधिक पीना,कहती है ये दुनिया,
मगर तेरे इसरार पे मैं, हर हद पार करता हूँ।
खुद पीने में नहीं वो दम,जो है तेरे पिलाने में,
सरूरे-शब तेरी निगाहों में,ये इकरार करता हूँ।
तुम जो परोसो जाम,मुमकिन नहीं कि ठुकरा दूँ,
जब ओंठों से लगा दो तो,कब इंकार करता हूँ।
कहे क्या और अब 'परचेत',काफी है,ऐ साकी,
है कुछ बात तुझमे जो,मधु से प्यार करता हूँ।
जबसे हुआ हूँ दीवाना, तेरी मय का,ऐ साकी,
सुबह होते ही शाम का,मैं इन्तजार करता हूँ।
अच्छा नहीं अधिक पीना,कहती है ये दुनिया,
मगर तेरे इसरार पे मैं, हर हद पार करता हूँ।
खुद पीने में नहीं वो दम,जो है तेरे पिलाने में,
सरूरे-शब तेरी निगाहों में,ये इकरार करता हूँ।
तुम जो परोसो जाम,मुमकिन नहीं कि ठुकरा दूँ,
जब ओंठों से लगा दो तो,कब इंकार करता हूँ।
कहे क्या और अब 'परचेत',काफी है,ऐ साकी,
है कुछ बात तुझमे जो,मधु से प्यार करता हूँ।
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