पहनकर नकाब हसीनों ने, कुछ पर्दानशीनों ने,
गिन-गिनकर सितम ढाये, बेरहम महजबीनों ने !
लम्हें यूं भारी-भरकम गुजरे ,वादों की बौछारों से,
हफ़्तों को दिनों ने झेला, सालों को महीनों ने !
निष्कपटता,नेकनीयती की नक्काशी के साँचों में,
जौहरी को जमके परखा,सब खोटे-खरे नगीनों ने !
खुदकुशी कर गए वो सब , उस सड़ते रवा को देखकर,
जोत-सींच ऊपजाया जिसको ,जिनके खून-पसीनों ने !
डॉलरिया गस खिला रहे , ईंधन में आग लगा रहे,
अध-मरों को अबके पूरा, मार दिया कमीनों ने !
उड़ता ही देखते रहे सब, उस तंत्र के उपहास को,
कुछ जो फरेबियों ने उड़ाया, कुछ तमाशबीनों ने !
हैरान हैं बहुत नवाबिन के, शातिराना अंदाज से,
शिद्दत से खाया मगर 'परचेत', हर तीर सीनों ने !
2 comments:
बहुत सुन्दर भाव हैं कविता में....
बहुत अच्छी रचना
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए.
ati sundar.lajawab.nice
sadaar suman
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